सनातन धर्म में किसी की मृत्यु हो जाने परअंतिम संस्कार व्यक्ति का (अंत्येष्टि संस्कार) दाह संस्कार किया जाता है। इस लेख में हम आपको शव जलाने का कारण, बताएंगे, विश्व के अन्य पंत और मजहब में अंत्येष्टि क्रिया अलग-अलग होती है। परंतु सनातन धर्म में हिंदू अपने शव क्यों जलाते हैं ।शव जलाने का एक वैज्ञानिक कारण है। सनातन धर्म की अंत्येष्ठ क्रिया का पूरा विवरण हम आपको इस लेख के माध्यम से प्रदान करेंगे।
मृत्यु जीवन का एक कटु सत्य है जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु सुनिश्चित है। सनातन धर्म में समूह की अंत्येष्टि करने की प्रथा है। सनातन धर्म में मृत्यु के पश्चात व्यक्ति का शरीर (अर्थात शव) का अग्नि दाह किया जाता है। प्राचीन मनुष्यों ने बहुत सोच समझकर इस प्रथा को जन्म दिया उनका यह मानना था कि मनुष्य का शरीर जो पांच तत्वों से मिलकर बना है अग्नि संस्कार करने से शीघ्रतम पांच तत्वों में विलीन हो जाता है। मनुष्य के पांच तत्वों का प्रकृति के तत्वों में विलय होना प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है।
अग्नि संस्कार करने का एक कारण यह भी है कि अग्नि संस्कार से मृतक शरीर के घातक जीवाणु और विषाणु जलकर नष्ट हो जाते हैं। जिससे उसका प्रभाव किसी जीवित प्राणी पर ना पड़े। जिससे कि जीवित प्राणी को उससे कोई हो जाए। विदेश में बसे हिंदुओं को देखकर कुछ पाश्चात्य लोगों ने भी अग्निदाह को स्वीकार किया है एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में 2050 तक अग्निदाह 40% तक हो जाएगा भारत में इसी पंथ के अनुयायियों में भी अब यह प्रथा देखी जा रही है।
सनातन धर्म में 14 माह तक के बालक की मृत्यु पर उसे जल प्रवाह करते हैं। भारत में भी सिंधु सभ्यता के दौरान कुछ लोग शवों को भूमिगत ही करते थे। पर बाद में फिर सब अग्नि संस्कार करने लगे थे। आजकल बड़े-बड़े महानगरों में विद्युत संस्कार भी होता है । विद्युत अग्नि संस्कार का आधुनिक रूप है।
विद्युतदाह में हिंदुओं में प्रचलित कपाल क्रिया नहीं हो सकती है क्योंकि कपाल क्रिया के लिए जो व्यक्ति शव को अग्नि देता है। वह शव के जल जाने पर बस द्वारा शव की खोपड़ी को तोड़ता है। इसके पीछे का यह विज्ञान है कि मनुष्य के मस्तिष्क में रहने वाला जीवन या विष्णु पूर्णतया समाप्त हो जाए और उसमें से उपप्राण निकालकर पांच तत्वों में शीघ्र विलीन हो जाए।
वर्तमान समय में विज्ञान का यह मानना है कि मनुष्य की मृत्यु के पश्चात उसका मस्तिष्क कुछ समय तक जीवित रहता है। विज्ञान का यह सत्य सनातन मनीषियों ने हजारों वर्ष पूर्व ही इसकी जानकारी प्राप्त कर लिया था। इसीलिए कपाल क्रिया प्रथा को उन्होंने जन्म दिया । परंतु हमें इस बात का खेद होता है जब धर्म की यह सूक्ष्मतम् जानकारी श्मशान घाट पर अंत्येष्टि क्रिया कर्म करने वाले आचार्य भी नहीं जानते जिसके परिणाम स्वरुप हम सब इन बातों को व्यर्थ की बात मानते हैं। क्योंकि इन सब बातों के पीछे के वैज्ञानिक तर्क से हम सब अनभिज्ञ हैं।
जिंदगी की अंतिम यात्रा से जुड़ी और कुछ सनातन बातें भी ध्यान देने योग्य हैं प्राचीन समय में जब यह समझ में आ जाता था कि देखते अब और अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता तो यह प्रथा थी कि उसे व्यक्ति को चारपाई से उतर कर जमीन पर लिटा देते थे। जिसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण था की जमीन पर व्यक्ति को उतार लेने से बीमार के प्राण आसानी से निकल जाते हैं। क्योंकि भूमि प्राण शक्ति को अपनी में शीघ्र प्रवाहित कर लेती है। चारपाई के का ए लकड़ी के होते हैं और लकड़ी विद्युत की कुचालक होती है इसलिए प्राण निकलने में कठिनाई होती थी। क्योंकि लकड़ी से विद्युत (प्राण भी एक प्रकार की विद्युत होती है ) प्रवाहित नहीं होती जबकि जमीन से विद्युत प्रवाह हो जाती है। इसी एक वैज्ञानिक कारण से बीमार व्यक्ति को जमीन पर उतार देते थे।
सनातन धर्म में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसके शव यात्रा के दौरान सबको शांत या मौन रहकर शमशान नहीं ले जाते हैं। अभी तो इस समय पर भी समाज को यह संदेश देते हैं कि इस संसार में केवल और केवल राम नाम के सब कुछ मिथ्या है कुछ भी सत्य नहीं है। इसीलिए शव यात्रा में राम नाम सत्य है कहा जाता है। इस प्रकार सनातन धर्म मृत्यु में भी जीवन को अंतिम संदेश देता है।
हिंदू धर्म में शव को क्यों जलाया जाता है ?
शव के जलाने का आध्यात्मिक वैज्ञानिक दोनों कारण है। आध्यात्मिक दृष्टि से व्यक्ति परिवार के माया मोह में फस जाता है इसलिए आत्मा इसी योनि में भटकती रहती है। आत्मा की मोक्ष के लिए व्यक्ति का अग्नि संस्कार करना जरूरी होता है।
हिंदू धर्म में शव जलाने का वैज्ञानिक कारण
मृत शरीर में हानिकारक जीवाणु और विषाणु होते हैं। जो जीवित लोगों लिए हानिकारक हो सकते हैं इसलिए अग्नि संस्कार करने पर यह जीवाणु और विष्णु जलकर नष्ट हो जाते हैं।
बच्चों को दफनाया क्यों जाता है ?
हिंदू धर्म हिंदू धर्म में साधु और बच्चों को दफनाया जाता है क्योंकि उनका इस सांसारिक माया से कोई मोह नहीं होता इसलिए उनकी आत्मा अग्नि संस्कार के बिना मोक्ष को प्राप्त होते हैं। इसलिए उनका अग्नि संस्कार करना वर्जित है।
कपाल क्रिया बांश द्वारा सिर को अलग करना क्या है?
मृत्यु के पश्चात अग्नि संस्कार में व्यक्ति के सिर को बांस द्वारा अलग किया जाता है। इस क्रिया को कपाल क्रिया कहते हैं। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि मस्तिष्क में जीवाणु जलकर पूरी तरह नष्ट हो जाएं। मृत्यु के पश्चात मस्तिष्क कुछ समय तक जीवित रहता है।