Ayurved Me Tulsi Ke Fayde : तुलसी का सेवन कैसे करना चाहिए

आप सभी लोगों ने तुलसी के पौधे के बारे में अवश्य सुना होगा। क्या आप जानते हैं कि Ayurved Me Tulsi Ke Fayde : तुलसी का सेवन कैसे करना चाहिए। इस लेख में हम आपको आयुर्वेद में बताए गए तुलसी के महत्व और उसकी विशेषता के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे । सनातन धर्म में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है। इसी महत्व को देखते हुए प्राचीन काल में प्रत्येक व्यक्ति के आंगन में तुलसी का पौधा अवश्य होता था। तुलसी का हमारे सनातन हिंदू धर्म में आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। आयुर्वेद में तुलसी के महत्व की विशेष चर्चा की गई।

 

Ayurved Me Tulsi Ke Fayde : तुलसी का सेवन कैसे करना चाहिए
Ayurved Me Tulsi Ke Fayde

Ayurved Me Tulsi Ke Fayde

तुलसी एक दैविक वनस्पति है इसलिए तुलसी का सनातन समाज में बहुत महत्व है। आज भी पूजा पाठ में तुलसी के पत्तों की आवश्यकता पड़ती है। पंचामृत चरणामृत दोनों में तुलसी के पत्ते अनिवार्य हैं। एक समय था जब भारत के प्रत्येक आंगन में तुलसी का चौरा अर्थात तुलसी लगाने का स्थान होता था। क्योंकि पवित्रता में तुलसी का स्थान गंगा से भी ऊंचा है।

धर्म की दृष्टि से तुलसी में अधिक मात्रा में विष्णु तत्व होते हैं। जो पवित्रता के प्रतीक हैं। इसलिए जिन पदार्थों में तुलसी डालते हैं । वे भी पवित्र हो जाते हैं। और क्योंकि इन पत्तों में दैवीय तरंगों को आकर्षित करने की क्षमता होती है। और वे दैवीय शक्ति प्रदान करते हैं। तुलसी की माला विष्णु परिवार से जुड़े देवी देवताओं के मंत्र जाप के लिए प्रयोग में लाई जाती है।

तुलसी की माला धारण करने से एक रक्षा कवच बन जाता है । तुलसी के पत्तों, शाखाओं से एक ऐसा रोग नाशक तेल वायुमंडल में उड़ता है । कि इसके आसपास रहने इसे स्पर्श करने, इस पानी देने और इसको  पौधे रोपने से ही कई रोग नष्ट हो जाते हैं। इसकी गंध दसों दिशाओं को पवित्र करके कवच की तरह प्राणियों को बचाती है। इसके बीजों से उड़ते रहने वाला तेल तत्व त्वचा से छूटकर रोम रोम के विकार नष्ट कर देता है।

आयुर्वेद के अनुसार तुलसी एक रामबाण पौधा है। जिसका प्रयोग कई प्रकार की शारीरिक कष्टों को दूर करने में होता है। तुलसी दो प्रकार की होती है । एक साधारण हरे पत्ते वाली तथा दूसरी श्यामा तुलसी जिसके पत्ते छोटे वा गहरे हरे रंग के होते हैं। श्यामा तुलसी पूजा के लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है।

इसका औषधि के रूप में एक और लाभ यह है कि तुलसी के पत्तों में कुछ मात्रा में पारा अर्थात मरकरी होता है । मरकरी एक सीमित मात्रा में शरीर के लिए बहुत लाभकारी है। परंतु दांतों के लिए हानिकारक। इसी कारण तुलसी के पत्तों को सबूत ही निगला जाता है । दांतों से चबाया नहीं जाता तुलसी नीम और शहद से भी अधिक गुणकारी है।

एक और विशेषता यह है । कि तुलसी के फूल पत्तियों की शक्ति मुरझाने पर समाप्ति हो जाती है। वही तुलसी के पत्तों की शक्ति सूखने पर भी बनी रहती है। और यह वातावरण को सात्विक बनाए रखती है। अगर घर आंगन में सड़क किनारे या कहीं और तुलसी का बगीचा लगा दे तो सांप बिच्छू अपने आप वहां से भाग जाते हैं। इसी कारण तुलसी वाले घर आंगन को तीर्थ समान माना जाता है।

बेल के पत्ते भी तुलसी की ही भांति सदा शुद्ध रहते हैं। जहां तुलसी में विष्णु तत्व होता है । वही बेलपत्र में शिव तत्व होता है इनके सूखने के बाद भी देवता तत्व सदैव विद्वान रहता है। और उसे प्रक्षेपित करता रहता है। अर्थात तुलसी और बेलपत्र कभी बासी नहीं होते हैं। बेल के पत्ते के चिकने वाले भाग को नीचे की तरफ रखकर शिव पिंडी पर चढ़ात हैं।

तुलसी का एक और नाम वृंदा भी है । अर्थात विद्युत शक्ति इसीलिए तुलसी की लकड़ी से बनी माला, करधनी, गजरा आदि पहनने की प्रथा हजारों वर्षों से सनातन धर्म में चली आ रही है । क्योंकि इससे विद्युत की तरंगे निकाल कर रक्त संचार में कोई रुकावट नहीं आने देती। इसी प्रकार गले में पड़ी तुलसी की माला फेफड़े और हृदय रोगों से बचाती है।

आप में से कुछ को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मलेशिया दीप में कब्रों पर तुलसी द्वारा पूजन प्रथा चली आ रही है । जिसका वैज्ञानिक आधार यह है। कि मृत शरीर वायुमंडल में दुष्प्रभाव और दुर्गंध नहीं फैलाता। शव को तुलसी विटप के पास रखने का एकमात्र वैज्ञानिक रहस्य यही है कि शव देर तक सुरक्षित रहता है और मृत शरीर की गंध तुलसी की दुर्गंध से दबी रहती है। 

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तुलसी का सेवन कैसे करना चाहिए

इजराइल में भी तुलसी के बारे में ऐसी ही धारणाएं हैं। सूर्य चंद्र के ग्रहण के समय बड़े बुजुर्ग भोजन में तुलसी के पत्ते इसलिए रखते थे। कि सौरमंडल से उस समय आने वाली विनाशक विकिरण तरंगे खाद्यान्न को दूषित न करे । इस प्रकार ग्रहण के समय तुलसी दल एक रक्षक आवरण का कार्य करता है।

तुलसी के पत्ते रात होने पर नहीं तोड़ने का विधान है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि इस पौधे में सूर्यास्त के पश्चात इसमें विद्यमान विद्युत तरंगे प्रकट हो जाती हैं । जो पत्तियां तोड़ने वाले के लिए हानिकारक है। इससे उसके शरीर में विकार आ सकता है।

तुलसी सेवन के पश्चात् दूध नहीं पीना चाहिए । ऐसा करने से चर्म रोग हो सकता है । इस प्रकार तुलसी सेवन के पश्चात पान भी नहीं खाना चाहिए। क्योंकि तुलसी और पान दोनों ही पदार्थ तासीर में गरम हैं। जो सेवन करने वाले के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

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