Benefits Of Yoga In Hindi : ऋषि मुनियों के योग का इतिहास

योग और यज्ञ भारतीय संस्कृति की प्रमुख आधारशिला है यह इतने प्राचीन है जितना कि हमारे भारतवर्ष का इतिहास हमारे ऋषि मुनियों ने इनकी माध्यम से ही भारतवर्ष की संस्कृति व सभ्यता को सींचा है । इस लेख में हम आपको Benefits Of Yoga In Hindi : विश्व में योग का महत्व बताते हैं। योग वह विज्ञान है जिसके बल पर हमारे ऋषि मुनियों ने अपनी ध्यान अवस्था न केवल भूलोक अपितु वायुमंडल आकाश मंडल व तारामंडल आदि विषम विषयों का ज्ञान अर्जन किया है । और इसी योग शक्ति से वे एक लोक से दूसरे लोग की यात्रा करते थे ।

Benefits Of Yoga In Hindi : ऋषि मुनियों के योग का इतिहास
Benefits Of Yoga In Hindi : ऋषि मुनियों के योग का इतिहास

History of Yoga : योग का इतिहास

हमारे ऋषि मुनि  ने इसी योग की शक्ति से ज्ञान विज्ञान के आधार पर भी एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाते थे केवल इतना ही नहीं वह अपनी इच्छा अनुसार अपने शरीर को पर्वत समान विशाल या चींटी जैसे लघु बना सकते थे अपने अनुपम गुण के कारण अब yog विश्व व्यापी हो गया है।

योग की यह समस्त चमत्कारी क्रियाएं केवल कपूर कल्पित नहीं है अभी तो भारत में एक समय ऐसा भी होता था की पूर्ण योगी बनने के लिए वर्षों की कठोर तपस्या की आवश्यकता होती थी तपस्या के समय योगी को शुद्ध आहार एवं विचार की आवश्यकता होती थी। 

केवल छोटी सी मानसिक भूल उनकी वर्षों की तपस्या भंग कर सकती थी योग साधना में क्रोध व कामवासना सबसे बड़े शत्रु हैं इन दोनों के प्रभाव से बड़े-बड़े योगी भी भयभीत हो जाते हैं। सच्चा योगी बनने के लिए एक योगी को कई इ से गुजरना पड़ता है।

एक बाल योगी सबसे पहले ऋषि वत्सल कहलाता था फिर वह ऋषि बनता था और जैसे-जैसे उसका आंतरिक व मानसिक स्तर उठता था राजर्षि या देवर्षि बन जाता था योग की अंतिम श्रेणी ब्रह्म ऋषि की थी ।  जिसको पाना अत्यंत कठिन था इसी कारण कलयुग में भी केवल दो ही ब्रह्ऋषि थे आज की इस युग में इस स्तर के योगी की कल्पना भी करना कठिन है।

Yoga Samagri : योग करने की सामग्री

ब्रह्म ऋषि अथवा देवर्षि इतनी क्षमता प्राप्त करने के लिए योगी को अपनी सारी ऊर्जा संचित करनी पड़ती थी । ब्रह्मचर्य  का अटूट पालन सत्य वचन और शुद्ध विचार शुद्ध आहार और वाणी माधुर्य व क्रोध का परित्याग सभी अनिवार्य होते हैं। इसलिए इन सब के कारण ध्यान योग के लिए योगी को अन्य नियमों का भी पालन करना पड़ता था।

ध्यान केंद्रित करने के योग के समय उसे गोबर से लिपि हुई भूमि कुशा के आसन पर सूती या रेशमी वस्त्र पहनकर पद्मासन की मुद्रा में बैठकर अपने विचारों पर अंकुश लगाना एक आकर सहित होकर ध्यान लगाना होता था।

जब एक योगी इन सब नियमों का पालन करते हुए ध्यान लगता है तो उसके शरीर में एक विशेष प्रकार की विद्युत ऊर्जा का संचार होता है उसके शरीर का प्रत्येक अणु सक्रिय हो उठता है। मस्तिष्क में तरंगे उठाती हैं और उसकी सांस लयबद्ध होकर न्यूनतम हो जाता है। इन सभी तथ्यों की पुष्टि आज पश्चिमी देशों ने भी की है।

उनका कहना है कि योग की अवस्था में मनुष्य की मानसिक स्थिति कैसी हो जाती है। कि उसके शरीर में एक विशेष प्रकार की विद्युत ऊर्जा का संचार होता है उसके मस्तिष्क में अल्फा वेव संचारित होने लगते हैं अल्फा किरणें मनुष्य में केवल तब होती है।

जब वह पूर्ण रूप से शांत व शिथिल अवस्था में हो एक साधारण व्यक्ति 1 मिनट में 14 से 15 बार सांस लेता है। पर गहरी ध्यान अवस्था में योगी की सांस गति लगभग आधी होकर साथ से आठ प्रति मिनट हो जाती है जिसके कारण योगी की आयु में वृद्धि होती है योग से हम सांस कम खर्च करते हैं इसलिए अधिक जीवित रहते हैं।

योग की शोध साधना में लगे प्राचीन मनुष्यों को जब इस सत्य का ज्ञान हुआ की योग से शरीर में विद्युत ऊर्जा का संचार होता है और ऊर्जा पैदा होती है तो उन्होंने इस पर और अधिक शोध किया गहन अध्ययन करने के पश्चात उन्होंने योग क्रिया की एक पद्धति तैयार की जिसमें एक योगी को कब क्या करना चाहिए ?  कहां बैठना चाहिए ?किस आसन पर बैठना चाहिए? कैसा बैठना चाहिए? क्या खाना चाहिए ?क्या नहीं खाना चाहिए ?आदि सभी तथ्यों पर वैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश डाला गया है।

योग क्रिया की पद्धति के अनुसार योगी को खुश के आसन पर या फिर मृग कि छाल या ऊन से बने आसन पर बैठकर साधना करनी होती है इन आसनों के पीछे वैज्ञानिक कारण था कि यह सब योगी के शरीर में उत्पन्न ऊर्जा को जमीन में जाने से बचते हैं क्योंकि यह तीनों विद्युत ऊर्जा के कुचालक है इसलिए विद्युत इनसे होकर जमीन में नहीं जा सकती है। और योग करके योगी जितने ऊर्जा अर्जित करता है ।

वह उसके शरीर में ही विद्यमान रहती है। जब एक योगी पद्म आसन लगाकर बैठता है तो उसके शरीर के सब अंग प्रत्यंग एक दूसरे से छूते रहते हैं इसलिए जब योगी के शरीर में विद्युत ऊर्जा का संचार होता है तो वह ऊर्जा उसके पूरे शरीर में ही घूमती रहती है।

शिर की शिखा में गांठ लगाने और हाथ की उंगलियों को किसी विशेष मुद्रा में रखने से पैदा हुई उर्जा शरीर के किसी भी अंग से बाहर नहीं निकाल पाती सिर पर छोटी उंगलियों में मुद्रा और पद्मासन में बैठा योगी अंग्रेजी की 8 अंक के समान हो जाता है जिसमें कोई छोर नहीं होता इसलिए जो भी उर्जा शरीर में पैदा होती है वह घूम फिर कर शरीर में ही रहती है।

योग अभ्यास के लिए धर्म ग्रंथो में नदी का तटीय पहाड़ की चोटी को सबसे अधिक उपयुक्त बताया गया है नदी के किनारे या पहाड़ की चोटी पर बैठकर योगाभ्यास करने का वैज्ञानिक कारण यह है की प्रकृति कि लय से शरीर किले को तन्मय करना।

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Benifits Of Yoga In Hindi

हमारे दूरदर्शी ऋषि मुनियों ने योग विज्ञान का बड़ा गहराई से अध्ययन किया है योगी को सात्विकता पैदा करने वाली सूती वस्त्र शरीर की विद्युत को नियंत्रित रखना के लिए गले में रुद्राक्ष की माला और योग अभ्यास से शरीर में पैदा होने वाली अग्नि को संतुलित व शांत रखने के लिए गाय के घी दूध का सेवन करने का विधान बताया है।

योग अभ्यास के पश्चात योगी लकड़ी से बनी पादुकाएं इसलिए पहनते थे ताकि योग द्वारा संचित ऊर्जा नंगे पांव चलने से भूमि में रसवित ना हो जाए लकड़ी की पादुकाओ के पीछे विज्ञान यह है की लकड़ी विद्युत ऊर्जा की कुचालक है इसलिए लकड़ी की पादुकाएं योगी की शरीर की ऊर्जा को उसके शरीर में ही संचित रखते हैं।

जब कोई व्यक्ति निरंतर योग अभ्यास करता है तो उसका मन शरीर और मस्तिष्क तीनों ही स्वस्थ व इस स्फूर्ति हो जाते हैं उसका शरीर निरोग मन शांत व मस्तिष्क तीव्र हो जाता है उसका व्यक्तित्व निखर जाता है ।

और वह लंबी आयु को प्राप्त होता है । वर्तमान समय में सनातन दृश्य व पतंजलि द्वारा बताए गए कड़े नियमों का पालन करना अत्यंत मुश्किल है इसलिए युग के अनुसार जो कुछ भी हम कर सकते हैं । उसे अवश्य करना चाहिए।

 

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