Bhagirath Ganga Story In Hindi : भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर कैसे लाए

सनातन धर्म में गंगा को मां के समान माना जाता है। माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से हमारे पाप नष्ट हो जाते हैं। और हमें पुण्य की प्राप्ति होती है। परंतु क्या आप जानते हैं। कि Bhagirath Ganga Story In Hindi : भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर कैसे लाए प्रत्येक सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यों में गंगा के जल का प्रयोग का विधान है। यज्ञ हवन, शादी विवाह, मुंडन संस्कार इत्यादि धार्मिक कार्यों में गंगा के जल का प्रयोग ही किया जाता है। गंगाजल के प्रयोग का एक आध्यात्मिक कारण के साथ इसका वैज्ञानिक कारण भी है।

Bhagirath Ganga Story In Hindi : भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर कैसे लाए
Bhagirath Ganga Story In Hindi

Bhagirath Ganga Story In Hindi : भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर कैसे लाए

भागीरथ ने ब्रह्मा व शिव की उपासना कर गंगा को पृथ्वी पर अपने पूर्वजों के कल्याण के लिए उतारा था। ऐसा पुराणों में लिखा है । गंगा में स्नान करने से मनुष्य के पाप कट जाते हैं। ऐसा हिंदुओं का विश्वास है। गंगा में अस्थियां बहाने से वे शीघ्र जल तत्व में मिल जाती हैं । यह सत्य सभी जानते हैं । केवल इतना ही नहीं गंगाजल महीनो बोतल में बंद रखने पर भी दूषित नहीं होता। यह तथ्य अब तो वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं।

भारतवर्ष में अनेक नदियां हैं जैसे यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, सिंधु,नर्मदा,सरयू, ब्रह्मपुत्र, गोमती आदि। सभी नदियों के अपने-अपने उद्गम स्थल है। और बहने का अपना-अपना मार्ग जिसे उन्होंने अपने आप अपने प्रवाह के साथ बनाया है। वेद पुराण पढ़ने के पश्चात् हमें ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलता जिसमें यह वर्णन हो की गंगा के अलावा किसी और नदी का उद्गम हुआ मार्ग किसी व्यक्ति ने खोजा और बनाया हो।

ऐसा केवल गंगा के साथ ही हुआ है । इस दृष्टि से गंगा नदी नहीं है । क्योंकि एक प्राकृतिक नदी वह होती है जो स्वयं बहती है। संस्कृत में नद का अर्थ है बहन नदी शब्द भी नद से ही बना है। परंतु गंगा स्वयं नहीं बही यह बहाई गई है। इसे भागीरथ ने खोजा और फिर उसका मार्ग निश्चित किया।

ऐसा संसार की किसी और नदी के साथ नहीं हुआ।परंतु गंगा की पवित्रता को देखते हुए ऐसा लगता है कि गंगा एक ऐसी विशिष्ट जल राशि है। जो नदी ही नहीं उससे भी उच्च श्रेणी की प्राकृतिक जल संपदा है । जिसे भागीरथ किसी विशेष प्रयोजन को ध्यान में रखते हुए खोजा होगा।

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शास्त्रों में बताया जाता है कि कपिल मुनि ने भागीरथ के दादा राजा सगर को कहा था कि उनके 60000 पुत्रों का कल्याण तभी होगा जब उनकी अस्थियां पवित्र जल से बहकर समुद्र में प्रवाहित की जाएं। राजा सगर और फिर उनके पुत्र राजा दिलीप दोनों का सारा जीवन उस पवित्र जल राशि को खोजने में बीत गया। परंतु फिर भी इस जल राशि को ढूंढ नहीं पाए ।

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Bhagirath ganga ko dharti per kaise laye

भागीरथ ने अपने पिता व दादा की खोज को आगे बढ़ाया। यदि प्रश्न केवल किसी की जल राशि से पूर्वजों की अस्थियों को समुद्र में प्रवाहित करना होता। तो फिर भागीरथ को बंगदेश से गंगोत्री तक जाने की आवश्यकता नहीं होती। वह मार्ग में किसी से भी किसी पर्वत श्रृंखला से किसी भी नदी को लाकर अपने पूर्वजों का तर्पण कर देते।

परंतु कपिल मुनि के शाप से मुक्ति पाने के लिए भगीरथ को तो किसी विशिष्ट पवित्र जल राशि की खोज करनी थी। जो पाप नाशनी हो । अतः ऐसी पवित्र जल राशि की खोज करते-करते भागीरथ गंगोत्री पहुंचे क्योंकि मार्ग में उन्हें उनके आवश्यकता की जल राशि कहीं नहीं मिला। इसका अर्थ यह हुआ कि गंगोत्री एक विशेष भौगोलिक महत्ता का स्थल है। जहां देवी शक्ति प्रकृति के साथ उसे विशिष्ट बनाती हैं।

यहां सभी के मन में एक प्रश्न यह उठता है कि गंगोत्री में ऐसा क्या दैविक है ? जो कहीं और नहीं है। भागीरथ जब गंगोत्री क्षेत्र में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां 24 वर्ग मील के क्षेत्र में 300 फीट ऊंचाई एक हिमखंड है जो सदियों से अचल खड़ा है। पुराणों में इसे ही गंगा को शिव की जटाओं में बंद कहा गया है । इस हिमखंड पर सतत बृहस्पति ग्रह की तरंगे गिरती रहती हैं । जो गंगोत्री की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण हैं।

बृहस्पति ग्रह की यह तरंगे यहां इस हिमखंड को पवित्र करती हैं । और दैविक बनाती हैं जिस कारण यह पवित्र खंड बन गया है। पुराणों में इसी बात को गंगा के स्वर्ग से अवतरित होना बताया गया है। क्योंकि बृहस्पति की दैविक तरंगे ऊपर स्वर्ग से ही तो आती हैं। बृहस्पति ग्रह से आने वाली तरंगें विश्व में अन्य किसी स्थल पर इस प्रकार नहीं गिरती। भागीरथ को ऐसे ही स्थल की खोज थी। जो गंगोत्री में आकर पूर्ण हुई।

भागीरथ ने उस हिमखंड के मूल से जल निकालने का मार्ग बनाया। जिसे गोमुख की संज्ञा दी गई पुराणों में इसे ही शिव की आराधना करके गंगा को शिव की जटाओं से धीरे-धीरे छोड़ना कहा गया है। भागीरथ ने फिर उस जलधारा का मार्ग बनाया । मार्ग के सारे अवरोधों को हटाकर गंगा को देवप्रयाग नामक स्थल पर अलकनंदा नदी से मिला दिया और आगे का मार्ग प्रशस्त किया इस प्रकार गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ।

गंगा की पवित्रता व इसके जल में पाप नाशिनी तत्व बृहस्पति ग्रह की कॉस्मिक रेज( तरंगों) व मार्ग की हिमालय पर पाई जाने वाली खास जड़ी बूटियां के कारण है। जो गंगाजल को वर्षों तक दूषित नहीं होने देती। इस प्रकार गंगा आस्था के साथ-साथ अपनी वैज्ञानिक स्थिति के कारण पवित्र व पापनाशिनी है। गंगा की पवित्रता और विशिष्टता अब तो वैज्ञानिक भी स्वीकार कर रहे हैं।

 

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