भारत में अनेक ऋषि मुनि हुए हैं जिन्होंने मानव जीवन के कल्याण के लिए सहस्त्रों ग्रंथों की रचना की है तथा उनका विधिवत गहराई से अध्ययन किया है। उन्हें में से एक है Charak samhita (चरक संहिता) । इसमें चरक ने चिकित्सा पद्धति के हजारों सूत्र दिए हैं जो मानव जीवन के कल्याण के लिए हैं। जिसका नाम Charak samhita (चरक संहिता) है।
Charak samhita
चरक संहिता की रचना ऋषि चरक ने किया था। यह प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान के तीन प्रमुख मानक ग में से एक ग्रंथ चरक संहिता है । चरक संहिता की रचना का समय प्रथम शताब्दी में हुआ था। चरक संहिता आठ प्रमुख भागों में वर्णित है इन आठ भागों का नाम स्थान के नाम से दिया गया है।
प्रत्येक स्थान में अनेक अध्याय हैं जिनकी कुल संख्या 120 है। इसमें मानव शरीर से संबंधित अंगों के विषय में रोगों के लक्षण और उनके चिकित्सा पद्धति के विषय में बताया गया है। Charak samhita में रोगों से लड़ने के उपाय एवं रोगों के लक्षण उनकी चिकित्सा विद्या शिक्षा, रोगों के विषय में विस्तृत जानकारी तथा भोजन के प्रकारों के विषय में बताया गया है।
महान चिकित्सक चरक आयुर्वेद के प्रख्यात विज्ञान थे उनकी चिकित्सा के क्षेत्र में इतनी गहरी जानकारियां थी कि एक जानकारी प्राप्त होने के पश्चात दूसरी जानकारी स्वत: ही प्राप्त हो जाती थी। आचार्य चरक आयुर्वेद के साथ-साथ शास्त्रों के भी ज्ञाता थे। वे सांख्य दर्शन का भी प्रतिनिधित्व करते थे।
महर्षि चरक ने मनुष्य के शरीर को वेदना, व्याधि तथा दुख का आश्रय माना है। तथा आयुर्वेद शास्त्र को इन दुखों का निवारण माना है। निरोगी काया को महान सुख की संज्ञा दी है । आरोग्यता से सुख समृद्धि धन अर्थ काम मोक्ष तथा सत्य की प्राप्ति होती है।
प्राचीन शास्त्रों से यह ज्ञात होता है कि उन दिनों ग्रंथ या तंत्र की रचना शाखा के नाम से जानी जाती थी जैसे कठ शाखा में कठोपनिषद बनी। शाखा अथवा चरण उसे समय की विद्यापीठ थे जहां अनेक विषयों का अध्ययन किया जाता था अतः यह संभव है कि Charak samhita (चरक संहिता) का प्रतीसंस्कार चरक शाखा में ही हुआ होगा।
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Charak samhita ka etihaas
चरक संहिता वर्तमान समय में जो हमें उपलब्ध है उसकी रचना आत्रेय के एक योग्य शिष्य अग्निवेश ने ईसा पूर्व सातवीं अथवा आठवीं शताब्दी में की थी । इसमें आत्रेय द्वारा दी गई शिक्षा का सम्मिलित रूप है। अग्निवेश का ग्रंथ 11वीं शताब्दी तक उपलब्ध रहा ऐसा प्रकट होता है।
समय और परिस्थितियों के अनुसार आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र के नए-नए सिद्धांत बनते गए तथा नए-नए उपचारों की खोज होती रही।Charak samhita (चरक संहिता) को नवी शताब्दी में एक कश्मीरी पंडित वह द्र्धबल ने पुणे चरक संहिता को संशोधित एवं संपादित किया और आज यही संस्करण हमें उपलब्ध है।
Charak samhita ka parichay
चरक संहिता का विवरण 8 भागों में है इन भागों को स्थान के नाम से जाना जाता है और इसमें 120 अध्याय हैं यह आठ स्थान इस प्रकार हैं।
- सूत्रस्थानम : सूत्र स्थान में 30 अध्याय हैं ।
- निदानस्थानम : इसमें आठ अध्याय हैं ।
- विमानस्थानम : विमान स्थान में 8 अध्याय हैं।
- शरीरस्थानम : इसमें भी आठ अध्याय हैं।
- इंद्रियस्थानम : इसमें 12 अध्याय हैं।
- चिकित्सास्थानम : चिकित्सा स्थान में 30 अध्याय हैं।
- कल्पस्थानम : कल्प स्थान में 12 अध्याय हैं।
- सिद्धिस्थानम : इसमें भी 12 अध्याय हैं।
Charak samhita सूत्रस्थानम
चरक संहिता का प्रारंभ सूत्र स्थान से होती है जिसमें आयुर्वेद के प्रमुख सिद्धांतों का विवरण है सूत्र स्थान पूरे Charak samhita (चरक संहिता) का दर्शन है । सूत्र स्थान के अध्ययन से संपूर्ण चरक संहिता की रचना एवं उसकी प्रयोजन स्पष्ट रूप से है प्राप्त हो जाते हैं सूत्र स्थान में समस्त विषयों को चार-चार अध्याय में बांट करके सात विषयों में प्रतिपादित किया गया है।
सूत्र स्थान के प्रथम चार अध्याय भैषज्य चतुष्टक के रूप में विस्तार पूर्वक बताया गया है जिसमें आयुर्वेद का अध्ययन की विशेषता एवं रोग के कारण है दोष धातु तथा मेलों की व्याख्या पंचकर्म का परिचय भैषज्यकल्पना एवं आयुर्वेदिक वनस्पति द्रव्यों का विस्तार पूर्वक व्याख्या की गई है।
चरक संहिता में कितने भाग हैं ?
चरक संहिता में 8 भाग है जिन्हें स्थान के नाम से जाना जाता है जैसे सूत्रस्थानम यह संहिता का पहला स्थान है। इसके 30 अध्याय हैं।
चरक संहिता का अनुवाद किसने किया ?
चरक संहिता वर्तमान समय में जो हमें उपलब्ध है उसकी रचना आत्रेय के एक योग्य शिष्य अग्निवेश ने ईसा पूर्व सातवीं अथवा आठवीं शताब्दी में की थी