Chipko Aandolan Ke Bare Mein | चिपको आंदोलन का वृत्तांत


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Chipko Aandolan Ke Bare Mein | चिपको आंदोलन का वृत्तांत
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Chipko Aandolan Ke Bare Mein | चिपको आंदोलन का वृत्तांत

दिसंबर 1973 का अंतिम सप्ताह भागम भाग भरा था। यह  चिपको आंदोलन में महिलाओं की पहली प्रत्यक्ष भागीदारी थी 29 दिसंबर को गोपेश्वर से श्यामा देवी जिन्होंने दसौली ग्राम स्वराज संघ स्थापना के लिए जमीन दी थी, अनेक महिलाओं के साथ फाटा पहुंची । 30 दिसंबर 1973 को श्यामा देवी, इंदिरा, जेठुली, जयंती तथा पार्वती के नेतृत्व में रामपुर में ग्रामीण महिलाओं का पहला जुलूस निकला । श्यामा देवी की अध्यक्षता में सभा हुई और पेड़ों की सुरक्षा का प्रण दोहराया गया। यह सभी लोग ठेकेदार जिस वृक्ष को काटते उसमें यह लिपट जाते हैं और उस पेड़ को नहीं काटने देते थे।

शिशुपाल, कुंवर तथा अनुसूया प्रसाद लगातार साथ थे। महिलाएं सफलता मिलने के बाद ही अपने घर वापस लौटी । यह अगले साल रेणी में होने वाले प्रतिरोध का पूर्व संकेत था । लेकिन महिलाओं के लिए यह नई बात नहीं थी। कुछ वर्ष पहले शराबबंदी आंदोलन में महिलाएं हिस्सा ले चुकी थी । चमोली में सक्रियता ज्यादा थी वहां की महिलाएं टिहरी और गिरफ्तारी के बाद सहारनपुर जेल गई। ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं कि सावधानी, सक्रियता और संगठन से मैखंडा  जंगल के ज्यादा पेड़ बच गए।

मंडल के बाद चिपको का दूसरा प्रतिरोध भी सफल रहा । यह कार्यकर्ताओ कि मेहनत और ग्रामीणों की समझ की वजह से हुआ। चिपको के पहले प्रतिरोधों में ग्रामीणों के साथ चंडी प्रसाद भट्ट ,आनंद सिंह बिष्ट, शिशुपाल, कुंवर, मुरारी लाल ,केदार सिंह रावत, श्यामा देवी आदि का प्रत्यक्ष योगदान रहा। सुंदरलाल बहुगुणा 25 अक्टूबर से 4 महीने की पदयात्रा पर निकल चुके थे। अभी जंगल की लड़ाई को उत्तरकाशी, नैनीताल और अन्य जगहों तक जाना था। फाटा की जीत से आंदोलन को ज्यादा गहराई और विस्तार मिला। आंदोलन के प्रतिनिधि को लखनऊ में बुलाकर उन्हें नई वन नीति हेतु सुझाव देने को कहा।

दूसरी और उनके इलाकों में कटान छपान जारी रखा। ना सरकारी नीति बदली और ना ही आंदोलनकारी फाटा में चारों पेड़ों का कटान हुआ पर अगली नीलामी के लिए छपान जारी था। तभी रेणी तथा अन्य जंगलों की नीलामी की सूचना मिली उधर उत्तराखंड के सात और जिलों की 23 लीसा इकाइयां बंद थी।

नवंबर 1973 के प्रारंभ में गोविंद सिंह, चंडी प्रसाद, हयात सिंह, वासवानंद तथा जगत सिंह केरणी आदि जोशीमठ रेणी के बीच के गांव की यात्रा कर चुके थे। दिसंबर 1973 में गोविंद सिंह, हयात सिंह, वासवानंद आदि गांव में जाते रहे। गोविंद सिंह ने तब एक नारा दिया “आ गया है लाल निशान ,लूटने वालों को सावधान’यह नारा देखकर चिपको आंदोलन का शुभारंभ कर पर्चा निकाला।

इसमें पहाड़ों को उपनिवेश बनाने और यहां की संपदा की लूट के विरोध के साथ संगठित होकर वन अधिकार प्राप्त करने का आग्रह था । फाटा से रेणी प्रतिकार के लिए ऊर्जा मिली । इस क्षेत्र में कार्य जारी था चंडी प्रसाद ने सर्वोदय मंडल के निर्णय अनुसार देहरादून जाना उचित समझा जहां जंगलों के नीलामी होने वाली थी। परंतु चंडिप्रसाद शहरों में नीलामी के विरोध से सहमत नहीं थे।

चिपको आंदोलन का पर्चा बनाकर वह देहरादून पहुंचे । उन्हें सीमा पता था पर संदेश ज्यादा लोगों तक जा सकता था यह नीलामी के प्रतीकात्मक विरोध का प्रारंभ था। पर्चे में जंगलों का विनाश रोकने नीलामी ठेकेदारी प्रथा बंद करने हक हकूक बढ़ाने श्रम समितियां बनाने कच्चा माल बाहर ना भेजने वनवासियों को कच्चा माल तकनीकी और धन मुहैया कराने हेतु चिपको आंदोलन को सफल बनाने की अपील थी।

2 जनवरी 1974 को चंडी प्रसाद ने वन अधिकारियों से मानवीय सामाजिक आर्थिक और पारिस्थितिक दृष्टिकोण से नीलामी रोकने को कहा । 3 जनवरी 1974 को चंडी प्रसाद देहरादून के टाउन हॉल के द्वार पर खड़े हो गए पिछली शाम भी ठेकेदारों और मुंशीयों से बात करने का प्रयास किया और बताया कि रेणी में चिपको आंदोलन चलेगा ठेकेदार मुंशी उनका मजाक उड़ाते रहे ।वह उनको सिर्फ पोस्टर का इशारा करते ठेकेदार मुंशी उत्सुकता से पोस्टर पढ़ते और फिर व्यंगात्मक मुस्कान के साथ भीतर जाते ।

टाउन हाल के भीतर नीलामी होती रही रेणी का जंगल 4 लाख 71 हजार रुपए में नीलाम हो गया नीलामी के बाद सभी बाहर आ रहे थे तो चंडी प्रसाद हाल के भीतर गए और रेडी के ठेकेदार के मुंशी से मिले उन्होंने कहा कि अपने ठेकेदार को बता देना कि जब वह रेडी जंगल काटने आएंगे तो उन्हें चिपको आंदोलन का सामना करना पड़ेगा। ठेकेदार मुंशीयों की स्मृति में उस दिन चिपको शब्द अटक गया।

12 मार्च 1974 को चंडी प्रसाद ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजा मुख्यमंत्री से वार्ता नई जंगल नीति बनाने से बाबत विमर्श होने पर भी सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जोशीमठ रेणी के इलाके में कार्यकर्ता आ जा रहे थे। गोविंद सिंह का प्रधान और आम जनता से सीधा संपर्क था। पर्चे लगातार बांटे और पढ़े जा रहे थे। जनवरी तथा फरवरी 1974 में हर ओर तैयारी होती रही।

जनता आंदोलनकारी ठेकेदार जंगल विभाग तथा लखनऊ की सरकार अपनी अपनी तरह से इस तैयारी में जुटे थे सब अपनी-अपने रणनीति बनाने में संलग्न थे। पर्वतीय विकास निगम ने चंपावत और तिलवाड़ा में दो लीसा इकाइयां 15 फरवरी 1974 से शुरू की । चमोली के गांवो में घोषणा पहुंच चुकी थी कि रेणी कटान के विरुद्ध 15 मार्च 1974 को जोशीमठ में प्रदर्शन होगा।

चिपको आंदोलन कब शुरू हुआ ?

30 दिसंबर 1973 को श्यामा देवी, इंदिरा, जेठुली, जयंती तथा पार्वती के नेतृत्व में रामपुर में ग्रामीण महिलाओं का पहला जुलूस निकला । श्यामा देवी की अध्यक्षता में सभा हुई और पेड़ों की सुरक्षा का प्रण दोहराया गया। यह सभी लोग ठेकेदार जिस वृक्ष को काटते उसमें यह लिपट जाते थे।

चिपको आंदोलन किसने शुरू किया था ?

सुंदरलाल लाल बहुगुणा ने

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