मित्रों सनातन धर्म के ग्रंथों में अनेक गूढ़ रहस्यों के विषय में वर्णन किया गया है। उन्हीं रहस्यों में से एक है गरुड़ पुराण क्या आप जानते हैं कि गरुण पुराण में क्या क्या लिखा है | गरुण पुराण कब पढ़ना चाहिए | Garun Puran In Hindi इसलिए लेख के माध्यम से हम गरुड़ पुराण से संबंधित सभी जानकारियां प्रदान करेंगे।
Garun Puran In Hindi | गरुण पुराण अध्याय 1
क्या हम सच में नर्क और स्वर्ग जाते हैं या कोई हमें हमारे बुरे कर्मों के लिए दंड देगा या यही जीवन हमें दंड के रूप में मिला है क्योंकि गरुड़ पुराण में स्वयं भगवान विष्णु जी ने मृत्यु और मृत्यु के बाद के जीवन के विषय में बताया है और साथ में हम गरुड़ पुराण से जुड़ी बहुत ढेर सारी बातों को पढ़ना चाहिए कि नहीं पढ़ना चाहिए घर में रखना चाहिए कि नहीं रखना चाहिए क्या स्त्री अंतिम संस्कार कर सकती है कि नहीं कर सकती ऐसी बहुत ढेर सारी भ्रांतियां हैं और बहुत ढेर सारी बातें फैली हुई है।
गरुण पुराण क्या है | Garun Puran
तो इस लेख में हम सभी बातों का सत्य जानने का प्रयास करेंगे गरुड़ पुराण को गरुड़ पुराण आखिर कहा क्यों जाता है क्योंकि इसमें तो मृत्यु का वर्णन है।भगवान विष्णु जी के बहाने पक्षीराज गरुड़ जी उन्होंने भगवान विष्णु से मृत्यु यमलोक की यात्रा इन सभी विषयों पर बहुत ढेर सारे प्रश्न किए थे।
और उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए भगवान विष्णु जी ने उत्तर दिए थे और उनके सभी प्रश्नों का जो संकलन है वह इसी पुराण में है। इसलिए इसको गरुड़ पुराण कहा जाता है और जो गरुड़ पुराण की मूल प्रति थी उसमें माना जाता है कि 19000 श्लोक थे लेकिन आज जब हम देखते हैं तो हमारे पास श्लोकों की संख्या केवल 8000 है।
स्ट्रक्चर की बात करेंगे तो यह पुराण दो भागों में बंटा हुआ है। एक पूर्व खंड और एक उत्तर खंड गरुण पुराण का पूरा ज्ञान लगभग 90% ज्ञान पूर्व खंड से लिया गया है। गरुण पुराण के उत्तर खंड को हम प्रेत खंड भी कहते हैं।
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गरुण पुराण कब पढ़ना चाहिए | Garun Puran kab padhna chahiye
हमारे सनातन धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके श्राद्ध कर्म के समय पर गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है।ऐसा माना जाता है कि गरुड़ पुराण का पाठ करने से जो व्यक्ति है जो मृतक व्यक्ति है।
उसकी आत्मा जब यमलोक की तरफ यात्रा प्रारंभ करती है तो वह यात्रा सुगम हो जाती है और अब लोगों में यह धारणा बन गई है कि अगर आप गरुड़ पुराण का पाठ करेंगे या इस पुराण को अपने घर पर रखेंगे तो यह मृत्यु के विषयों को आकर्षित करता है।
जिससे किसी सदस्य की मृत्यु भी हो सकती है। लेकिन गरुण पुराण के महात्म्य में स्पष्ट लिखा है कि जो भी गरुड़ पुराण का पाठ करता है उसे विद्या यश कीर्ति लक्ष्मी आरोग्यादि सभी कुछ प्राप्त होते हैं और यहां पर यह भी लिखा है कि जो व्यक्ति एकाग्र होकर गरुड़ पुराण का पाठ करता है सुनता है या सुनाता है लिखता है या लिखवाता है और साथ में धर्मार्थी है तो उसे चारो पुरषार्थों की सिद्धि प्राप्त होती है।
गरुड़ पुराण का पाठ करने से विद्यार्थी को विद्या विजयासु को विजय गुणों के इच्छुक व्यक्ति को गुण काव्य शक्ति को चाहने वाले को कवित्व गुण और जीवन का सार तत्व चाहने वाले को सार तत्व मिल जाता है।
तो मित्रों जब गरुण पुराण में ही लिखा है कि इस पुराण को पढ़कर आपके चारों पुरुषार्थों की सिद्धि हो जाती है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष तो यह प्रश्न ही नहीं होता है कि आप जीवित रहते हुए इसका पाठ नहीं कर सकते या इस पुराण को घर पर नहीं रख सकते क्योंकि मृत्यु के बाद वैसे भी आप इसको नहीं पढ़ पाएंगे और गरुड़ पुराण को तो जीवित रहते हुए पढ़ना है।
क्योंकि गरुड़ पुराण से जो आपको शिक्षाएं मिलेगी मैं मृत्यु संबंधित जो आपको रहस्य जानने को मिलेंगे उसको सीख कर आप अपने जीवन में शुभ कर्म करते हुए एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं तो अब समझते हैं कि गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद क्या होता है
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मृत्यु के बाद क्या होता है | Garun Puran ke Anusar Mrityu ke bad kya hota hai
अब साथियों मृत्यु के बाद प्राणियों का क्या होता है इसके विषय में जानने के लिए आप गरुड़ पुराण के अध्याय 2 और अध्याय 15 को पढ़ सकते हैं गरुड़ पुराण के अनुसार आपका दाह संस्कार इसलिए किया जाता है ।
जिससे आपके शरीर से आत्मा तत्व अलग हो जाए और फिर इस आत्मा तत्व को यमदूत यमलोक लेकर जाते हैं कि जो बुरे कर्म किए होते हैं उनके लिए यह यात्रा बहुत दुखदाई होती है और जो अच्छे कर्म किए होते हैं उनके लिए यह यात्रा सुगम होती है जिनकी यात्रा दुखदाई होने वाली है । उनके लिए बहुत ग्राफिक डिस्क्रिप्शन यहां पर दिया गया है देखेंगे तो जो ज्ञान है यह हमारे उपनिषदों से ही आ रहा है।
अगर आप उपनिषदों में जाएंगे तो वहां पर बताया गया है की मृत्यु के बाद जो आपका शरीर है स्थूल शरीर जो आपको आपके माता-पिता से मिला है वह आपके सूक्ष्म शरीर से अलग हो जाता है फिर सूक्ष्म शरीर के पास दो मार्ग होते हैं एक उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन
अब उत्तरायण में वही सूक्ष्म शरीर जाता है जिसके कारण संस्कार अच्छे होते हैं और अच्छी योनियों के शरीर मिलने वाले होते हैं और दक्षिणायन की तरफ वही सूक्ष्म शरीर जाते हैं जिनके कर्म संस्कार बुरे होते हैं जिन्हें दुख भोंकने हैं तो उन्हें निचले स्तर की अधम योनियों के शरीर मिलते हैं।
अब इसी उपनिषद के ज्ञान को आम जनता बहुत गंभीरता से ले और सजग रहे इसलिए गरुड़ पुराण में यह बातें बहुत अच्छे तरीके से बताई गई है और इस दुखद यात्रा का वर्णन भी मिलता है।
Garun Puran Me Narak Kaisa hai | गरुण पुराण में नर्क का वर्णन
यहां पर बताया गया कि जिन्होंने बुरे कर्म किए हैं उनकी जो आत्मा होती है जब वह यमलोक की तरफ बढ़ती है तो उसे विश्राम करने के लिए छाया भी नहीं मिलती प्यास बुझाने के लिए पानी भी नहीं मिलता और भूख मिटाने के लिए भोजन भी नहीं मिलता और साथ में वह जब कभी जोंक से भरे कीचड़ में गिरता है या फिर सांपों से भरे कुएं में कभी वह पर्वतों से गिरता है तो कभी वह बर्फीली हवाओं के चपेट में आ जाता है उसे अंगार और बिच्छुओं से भारी मार्गों पर चलना पड़ता है।
और फिर इसी मार्ग पर वैतरिणी नदी आती है जिसे यमलोक की गंगा कहा जाता है जो शुभ काम किए होते हैं वो इस नदी को सहज पार कर लेते हैं लेकिन जो बुरे काम किए होते हैं उनके लिए यह नदी खौलते हुए पानी की तरह हो जाती है और उसमें कीटाणु और खतरनाक घड़ियाल जैसे जीव भी उत्पन्न हो जाते हैं ।
लेकिन गरुड़ पुराण का उद्देश्य यही है कि अशुभ कर्मों से बचे क्योंकि पहले के लोग धार्मिक ग्रंथो से ही जीवन जीना सिखते थे। तो शुभ कर्मों से होने वाले लाभ और अशुभ कर्मों से होने वाली इस प्रकार से हानि के विषय में जानकार लोग शुभ कर्म ही करते थे इसलिए गरुड़ पुराण में बहुत से कामों को उल्लेख किया गया है ।
कि जिनको करने से आपको इस प्रकार की दुखदाई यम लोक तक की यात्रा करनी पड़ेगी जैसे गुरु का अपमान हो या माता-पिता का अपमान हो या पत्नी का त्याग हो गया किसी का वध हो गया किसी की जमीन पर अपना अधिकार जबरदस्ती कर लेना इस प्रकार के बहुत ढेर सारे काम है जिनके लिए मृत्यु के बाद यह यातनाएं बताई गई थी जिसे जो समाज में रहने वाला आम आदमी है वह अशुभ कर्मों से बचता था और शुभ कर्म ही करता था।
क्योंकि अगर आप सामान्य बुद्धि से सोचें कि एक बार आपकी जब मृत्यु हो गई तो आपका स्थूल शरीर जिस शरीर के माध्यम से आपको दुख और सुख का अनुभव हो रहा था वही नष्ट हो गया तो आपकी आत्मा कैसे सुख और दुख को अनुभव कर सकती है बिना शरीर के क्योंकि हमने भागवत गीता में भी पढ़ा है ।
आत्मा अजर अमर है आत्मा को ना तो कोई शस्त्र काट सकता है ना वायु से सुखा सकते हैं ना अग्नि से जला सकते हैं ना जल से गिला कर सकते है। तो आत्मा किसी खोलते पानी में जाकर तड़पेगी ऐसा संभव नहीं है ।
इसलिए गरुड़ पुराण में बताइ गई बातें आपको शुभ कर्मों की तरफ ले जाती है और जो उपनिषदों का ज्ञान है कि आपकी मृत्यु के बाद कुछ नई योनि में आपकी आत्मा प्रवेश करेगी उसको भी अपने डिस्क्रिप्शन में समाहित करते हैं।
तो मित्रों आपकी आत्मा को यातना तो नहीं पहुंचेगी लेकिन हां शरीर को जरूर मिल जाएगा जिसमें आपके कर्म संस्कार भोगे जाएंगे तो जो शरीर आपको मिला है जो जीवन आपको मिला है वही आपके लिए स्वर्ग है और वही नर्क है । आइए जानते हैं कि आत्मा किस चीज के अनुसार नया शरीर धारण करती है।
हमारे पौराणिक ग्रंथ भगवद्गीता, उपनिषद या दर्शन हों या योग हो उनके अनुसार जब सूक्ष्म शरीर यानी की जीवात्मा किसी देह से जुड़ती है तो जन्म होता है यही जन्म की परिभाषा है और मृत्यु की परिभाषा यह है कि जब उन दोनों में अलगाव होता है।
सूक्ष्म शरीर और देह में यानी स्थूल शरीर में तो मृत्यु है अगर आप दर्शनों को पढ़ेंगे तो जुड़ाव है उसके बीच जो ब्लू का काम कर रहा है यानी कि सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर से कैसे जुड़ा हुआ है कर्म संस्कारों के कारण जुड़ा हुआ है यानी उनके बीच में उनके साथ में बंधे रहते हैं कर्म संस्कार । अब जब जीवन चलते रहता है तो कर्म संस्कार क्षीण होते जाते हैं।
क्योंकि यह कर्म पुराने हैं और भोगे जा रहे हैं। जीवन में आप जो भी घटित हो रहा है जो भी चीज आपके नियंत्रण में नहीं है। वह एक तरह से आपके कर्म संस्कार भोगे जा रहे हैं तो जब पुराने कर्म संस्कार क्षीण हो जाते हैं। भोगकर के खत्म कर दिए जाते हैं तो यह देह का काम फिर कुछ नहीं रह जाता है यह देह अलग हो जाती है और आपकी मृत्यु हो जाती है।
लेकिन इस देह में रहते हुए भी यदि आप कुछ नए कर्म संस्कार कर लिए हैं। अब उन नए कर्म संस्कारों को भोगने के लिए नया शरीर धारण करना पड़ता है और यह प्रक्रिया चलती रहती है तो आपके कर्म संस्कारों के अनुसार ही आपको नया शरीर मिलता है।
गरुण पुराण के अनुसार पुनर्जन्म कैसे होता है |
अगर आप महर्षि पतंजलि जी के योग दर्शन में जाएंगे तो वहां पर एक योग सूत्र है जिसमें बताया गया है कि आपकी जीवात्मा को जो नया शरीर मिलता है वह जाति आयु और देश काल के अनुसार मिलता है मान लीजिए अपने ऐसे कर्म किए हैं जिनका फल आपको एक पोलर बियर के रूप में मिलने वाला है।
तो यहां पर जाति क्या हो जाएगी यानी योनि हो जाएगी पोलर बीयर की देशकाल क्या होगा । जैसे कि पोलर बियर नमक प्राणी उत्तरी ध्रुव में पाया जाता है तो देशकाल उत्तरी ध्रुव निश्चित हो जाती है।
जैसे पोलर बियर का जीवनकाल 25 साल से 35 साल तक जीता है। तो उसे 12 वर्ष की आयु में वैसा फल मिलेगा या 18 वर्ष की आयु में वैसा फल मिलेगा तो जाति आयु और देशकाल के अनुसार से आपको आपके कर्मों का फल अलग-अलग योनियों में मिलता है।
गरुण पुराण में बताया गया है कि किस प्रकार से नया शरीर मिलता है। गरुड़ पुराण मे जो प्रेत खंड है इसमें जो प्रेत होता है अक्सर समझ लेते हैं कि यह भूत है जैसे कि भूत प्रेत हम बोलते हैं लेकिन दर्शन शास्त्रों में प्रेत्यभाव मिलेगा और वहां पर प्रेत्यभाव का अर्थ पुनर्जन्म होता है मरने के बाद जो पुनर्जन्म होता है यानी जो आपकी इच्छा है शरीर में बंधने की उसे ही प्रेत्यभाव कहा गया है ।
जब मृत्यु के बाद आपका पुनर्जन्म होता है यह प्रेत्यभाव है। इसलिए प्रेत खंड में गरुड़ पुराण में यह बातें बताई गई है। गरुण पुराण में बताया गया है कि जिस प्रकार की चेतना आपकी रहती है मृत्यु के समय और आप जिस प्रकार से मरते हैं उसी प्रकार की योनि में आपका जन्म होता है। उदाहरण के लिए बताया गया कि यदि आप विष (जहर) पीकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं तो आप सर्प के रूप में जन्म लेंगे हैं।
भागवत गीता में जाएंगे और 15अध्याय का आठवां श्लोक देखेंगे तो वहां पर श्री कृष्णजी भी बता रहे हैं की मृत्यु के समय आपकी जैसी चेतना होती है वैसे ही चेतना आपको ले जाती है और नए शरीर से मिलवाती है। अगर आप बिल्ली कुत्तों की तरह जीवित है और उनकी तरह की चेतना रखते हैं तो आप बिल्ली कुत्ते बनते हैं तो कहने का तात्पर्य है कि अगर आप अपनी चेतना पशु के सदृश रखते हैं तो आप पशु ही बनेंगे।
Garun Puran Me Shraddh karma Kaon karta hai | गरुण पुराण के अनुसार श्राद्ध कर्म किसको करना चाहिए
ये बातें आपने दार्शनिक स्तर पर समझ लिया अब हम कुछ महत्वपूर्ण बिंदु जो दिए गए हैं उसको समझ लेते हैं कि क्या स्त्रियां भी अंतिम संस्कार या श्राद्घ क्रिया में भाग कर सकती हैं या नहीं । मित्रों गरुड़ पुराण में यह बताया गया है कि जब जीवात्मा अपने संपूर्ण कर्म भोग कर लेती है और फिर देह त्याग लेती है।
उसकी देह को भूमि पर कुश और तिल बिछाकर उसका आसान बनाकर उस पर लेटा देना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है जो कुश का मूल भाग है उसमें ब्रह्मा जी और उसके मध्य भाग में विष्णु जी और जो अग्र भाग् है उसमें शिवजी प्रतिष्ठित होते हैं।
इसलिए देवताओं की तृप्ति के लिए कुश और पितरों की तृप्ति के लिए तिल बिछाना चाहिए और फिर इसके बाद मृतक का दाह संस्कार होता है वह भी पूर्व की ओर मुख करके या फिर उत्तर दिशा में संस्कार के समय अग्नि देव की पूजा करनी चाहिए।
और मृत्यु के 11वें दिन श्राद्ध करना चाहिए और इस प्रक्रिया में 6 स्थान पर मृतस्थान, द्वार,चौराहा, विश्राम स्थल चिता और अस्थिचयन स्थान पर पिंडदान भी करना चाहिए। अब यहां पर यह प्रश्न उठता है कि स्त्रियां श्राद्ध कर्म कर सकती हैं या नहीं ।
अंतिम संस्कार करने का कार्य पौत्र, पुत्र भाई या भाई की संतान या फिर अपनी जाति या सपिंड का कोई व्यक्ति कर सकता है अगर पुरुषों का अभाव है तो समय यह कार्य स्त्रियां भी कर सकती हैं। ऐसा कहीं पर भी उल्लेख नहीं है कि श्राद्ध कर्म या अंतिम संस्कार स्त्रियां नहीं कर सकती हैं।
श्राद्ध कर्म का उद्देश्य क्या है ऐसा माना गया है कि जो मृतक हैं श्राद्ध करता को सुख, शांति, वैभव आदि प्रदान करते हैं। तो अगर एक स्त्री भी कर रही है तो कोई अशुभ नहीं है इसे अपवित्र नहीं मानना चाहिए ।