महीनों का नाम चैत्र,वैशाख, ज्येष्ठ क्यों रखा गया | hindi month name

सनातन हिंदू धर्म में प्रत्येक त्योहार व्रत उपवास दिन एवं महीना का अपना गूढ़ रहस्य है। क्या आप हिंदी जानते हैं कि महीनों का नाम चैत्र,वैशाख, ज्येष्ठ क्यों रखा गया | hindi month name  | सनातन संस्कृति में आध्यात्मिकता और विज्ञान दोनों एक ही है कि वह एक दूसरे से अलग नहीं है। अध्यात्म का अर्थ विज्ञान है यही अध्यात्म के कारण हम विज्ञान को सजोएं हुए हैं। इसी आध्यात्मिकता के पीछे हिंदू महीनों के नाम भी हैं ।

महीनों का नाम चैत्र,वैशाख, ज्येष्ठ क्यों रखा गया | hindi month name
महीनों का नाम चैत्र,वैशाख, ज्येष्ठ

महीनों का नाम चैत्र,वैशाख, ज्येष्ठ क्यों रखा गया | hindi month name

हमारे यहां प्रत्येक जो हिन्दी महीनों का नाम रखा गया है । वह क्यों रखा गया है इसके पीछे का भी एक बहुत ही गहरा विज्ञान है। जो पश्चिमी देश जो अपने आप को विकसित देश कहलाते हैं। जो अपने आप को अधिक बुद्धिमान बताते हैं । यदि उनसे पूछा जाए की अंग्रेजी महीने का पहला मास जनवरी क्यों रखा गया तो कोई भी अंग्रेज तो नहीं बता सकता कि जनवरी, फरवरी क्यों पड़ा।

और हमसे यदि कोई पूछे कि हिंदी महीना में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आदि नाम क्यों पडा। तो हम उसे अवश्य इस प्रकार बताएंगे कि जिस महीने में चित्रा नक्षत्र चंद्रमा से मिलता है पूर्णमासी तिथि प्रतिपदा को उस महीने का नाम चैत्र होता है । इसी प्रकार चैत्र के अगले महीने को वैशाख क्यों कहते हैं ? इसका कारण यह है कि जिस महीने कि पूर्णिमा को विशाखा नक्षत्र चंद्रमा से मिलता है उस महीने का नाम वैशाख पड़ जाता है।

जिस महीने मे जेष्ठा नक्षत्र पूर्णिमा तिथी को चंद्रमा से मिलता है । उस महीने का नाम ज्येष्ठ पड़ जाता है। इसी प्रकार जिस महीने में पूर्वाषाढा या उत्तराशाढा पूर्णमासी को चंद्रमा से मिलता है। उस महीने का नाम अषाढ़ कहा जाता है। जिस महीने की पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र का चंद्रमा से मिलन होता है उसका नाम हो जाता है श्रावण।

हिंदी महीनों में श्रावण महीने के पश्चात अगला महीना भाद्रपद होता है। जिस महीने की पूर्णिमा में पूर्व भाद्रपद या उत्तर भाद्रपद चंद्रमा से मिलता है उसे भाद्रपद कहते हैं। जिस महीने की पूर्णिमा तिथी प्रतिपदा को अश्वनी नक्षत्र चंद्रमा से मिलता है । उस मास आश्विन कहते हैं।

अश्विन मास को क्या कहते  हैं

सामान्य बोलचाल कि भाषा में लोग आश्विन मास न कहकर कुमार भी कहते हैं। क्योंकि आश्विन कुमार देवता भी है। उन्ही देवता के नाम पर अश्वनी नक्षत्र का नाम है। इसीलिए उनका नाम आश्विन कुमार पूरा न कहकर अधूरा नाम केवल कुमार ही कहते हैं। जिस कारण महीना का नाम कुमार कहते हैं।

कार्तिक जिस महीने की पूर्णमासी को कृतिका नक्षत्र चंद्रमा से मिलता है । उस महीने को कार्तिक कहते हैं । कार्तिक के पश्चात् मार्गशीर्ष उसको हम लोग अगहन भी कहते हैं जिस महीने की पूर्णमासी को मृगसिरा नक्षत्र चंद्रमा से मिलता है उस महीने को मार्ग शीर्ष कहते हैं ।

जिस महीने में पुष्य नक्षत्र चंद्रमा से मिलता है उस महीने को पौष कहते हैं । पौष महीने के बाद अगला महीना माघ आता है। क्योंकि इस महीने की पूर्णमासी को मघा नक्षत्र चंद्रमा से मिलता है इस कारण इस महीने को माघ कहते हैं । इसके पश्चात अगला महीना फाल्गुन आता है क्योंकि इस माह में की पूर्णिमा को पूर्वा फाल्गुनी अथवा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र चंद्रमा से मिलता है जिस कारण इस महीने को फाल्गुन माह कहते हैं। फाल्गुन माह वर्ष का सबसे अंतिम महीना होता है।

Hindu Bhagva Jhanda | सनातन ध्वजा केसरिया क्यों

पहला मास चैत्र क्यों | Chitra maheena

सनातन हिंदू परंपरा में वर्ष का प्रथम मास चैत्र माना जाता है । क्योंकि चैत्र माह में बसंत ऋतु प्रगति पर होती है और बसंत ऋतु को प्रकृति का आरम्भ माना गया है। इसीलिए तो संपूर्ण प्रकृति है पेड़ पौधे हरे भरे एवं नवीन दिखाई पड़ती है। जब चैत्र माह में प्रकृति ही नवीन है तो इसे समझा जा सकता है कि यह वर्ष का प्रारंभ यहीं से होना चाहिए वैसे त्रैमासिक वर्ष का प्रारंभ क्यों माना गया है यह एक अलग अध्याय है।

वर्तमान समय में सैकड़ो कथावाचक आपको मिल जाएंगे परंतु हुए सभी कथा वाचक ज्ञान की बातें ना करके फालतू की बात करते हैं ज्यादातर कथावाचक राजनीतिक दृष्टि से प्रेरित होते हैं। वह हिंदू संस्कृति और उनके विषय में गहरी से गहरी सूत्र के विषय में जानकारी न देकर वे ढोंग ढकोसला और अंधविश्वास की बातें अधिक बताते हैं।

परंतु अपनी सनातन संस्कृति में प्रमाणित विज्ञान के विषय में जानकारी नहीं देंगे। ऐसे बहुत कम कथा वाचक है जो ऐसी बातें करते हो परंतु राजनीति प्रेरित कथावाचको की संख्या अधिक बढ़ रही है। वह कथा में हिंदू संस्कृति का ज्ञान ना बताकर इस्लामिक संस्कृतियों को कथा में शामिल करते हैं।

और इस्लामिक पंथ कि कुरीतियों को अच्छा बताने और भोले भाले श्रोता को मूर्ख बनाते हैं। और उन बेचारे लोगों का समय नष्ट करते हैं। ऐसे मूर्ख वक्ता और कथा वाचकों से हमें दूरी बनाए रखना चाहिए। और हमें अपने धर्म के प्रति अटूट विश्वास रखना चाहिए तथा उसकी गहराइयों को जानने का प्रयत्न करना चाहिए।

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