Hindu Bhagva Jhanda | सनातन ध्वजा केसरिया क्यों

सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। आपने हमेशा साधु संत को भगवा रंग के कपड़े पहने हुए देखे होंगे। क्या आप जानते हैं कि Hindu Bhagva Jhanda | सनातन ध्वजा केसरिया क्यों हैं। सनातन धर्म की ध्वजा केसरिया रंग होने के पीछे एक गहरा विज्ञान है। हम आपको इस लेख के माध्यम से सनातन धर्म में केसरिया ध्वज अथवा भगवा रंग का उपयोग सर्वाधिक क्यों किया जाता है सनातन धर्म में केसरिया रंग का झंडा क्यों सबसे उपयुक्त माना जाता है।

Hindu Bhagva Jhanda | सनातन ध्वजा केसरिया क्यों
सनातन ध्वजा केसरिया क्यों

Hindu Bhagva Jhanda | सनातन ध्वजा केसरिया क्यों

भारतीय झंडा जिसे हम तिरंगा कहते हैं जिसमें तीन रंग सम्मिलित हैं उनमें से एक रंग केसरिया भी है। केसरिया रंग तिरंगे में सर्वप्रथम डाला गया था पिंगले वैंकेया जिन्होंने तिरंगे को उसका स्वरूप दिया उन्होंने सर्वप्रथम केसरिया रंग को सम्मिलित किया था। इस रंग की इतनी महत्व देने का कारण यह था कि यह रंग भारत के मूल संस्कृति से जुड़ा है और इसके पीछे एक गहरा दर्शन है।

केसरिया रंग दो प्राथमिक रंगों लाल वह पीला का मिश्रण है पुरातन मान्यताओं के अनुसार लाल रंग मां दुर्गा गणेश जी और हनुमान जी से जुड़ा है यह रंग शक्ति का द्योतक है। केसरिया ध्वज कर्माता को प्रदर्शित करता है तथा भगवा रंग पुरुष को दर्शाता है यह रंग हमें कर्मशील होने को कहता है तथा इसके अतिरिक्त पीला रंग भगवान विष्णु जी और बृहस्पति देव दोनों का पसंदीदा रंग है ।

भगवान विष्णु सदा शांत रहने वाले हैं और प्रत्येक विषम परिस्थितियों का समाधान निकालने वाली विवेकशील तथा इस सृष्टि को जीवंत प्रदान करने वाले हैं पौराणिक मान्यताओं में ऐसा वर्णन मिलता है। देवी बृहस्पति देव को तो ज्ञान का स्वरूप ही कहते हैं वह ज्ञान के सागर हैं। इस प्रकार केसरिया रंग जो लाल और पीले रंगों का मिश्रण है जहां हमें सकरी कर्मठ और पुरुष होने की प्रेरणा देता है वही यह भी संदेश देता है कि हम सक्रिय रहते हुए विवेक से भी काम ले।

ऐसा कमी जो बुद्धि और विवेक के साथ ना किया गया हो कल्याणकारी गधा भी नहीं हो सकता इसी कारण इन दोनों रंगों की युक्ति वाली केसरिया रंग अत्यंत महत्वपूर्ण है यही इसका दर्शन है। हमारे ऋषि मुनियों ने भगवा रंग के कपड़े इसी कारण पहनते हैं। ताकि उन दोनों रंगों की तिरंगे प्राप्त होती रहे वे हमारे प्राचीन समाज की सक्रिय अंग थे केवल उपदेश नहीं।

वर्तमान समय में कुछ तथाकथित मूर्ख विद्वान लोग यह समझते हैं की कर संत समाज के निष्क्रिय अंग हैं जो कुछ नहीं कर सकते हैं कोई साधु संत बन जाते हैं परंतु ऐसा नहीं है साधु के अंदर त्याग है तप है। साधु संत की भी परिवार होते हैं परंतु वह अपना परिवार छोड़कर अपना संपूर्ण जीवन भगवान की पूजा आराधना में अर्पित कर देते हैं यदि इतना आसान होता तो प्रत्येक व्यक्ति साधु संत बन जाता परंतु ऐसा नहीं है क्योंकि इस भौतिक जगत में भगवान की माया इतनी प्रकार है कि लोग अपने घर परिवार को छोड़ ही नहीं सकते इसके लिए अत्यधिक तप और त्याग की आवश्यकता होती है।

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Sanatan Dharma Me Vrat Upvas

सनातन धर्म पूर्णतया विज्ञान सम्मत है हमारे धर्म में जो भी मान्यताएं अथवा तिथि त्यौहार व्रत उपवास इत्यादि जो हम सब अपने जीवन में पालन करते हैं। यह सब हमारे ऋषि मुनियों की देर है उन्होंने इस पर गहरा अध्ययन किया और अध्ययन के पश्चात उसे कल्याणकारी मंत्र व्रत उपवास अथवा पर्व त्यौहार को मानव जीवन के कल्याण के लिए समस्त प्राणियों को इस धर्म से जोड़ दिया। और हमें आध्यात्मिकता की आस्था से जोड़कर हमें इन चीजों से जुड़े रखा ताकि इन चीजों का लाभ प्रत्येक प्राणियों को मिलता रहे।

सनातन धर्म में व्रत उपवास इसलिए रखा गया जैसा कि आप जानते हैं की एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। हमारे ऋषि मुनियों ने इस पर अध्ययन किया कि जो हम प्रतिदिन आहार ग्रहण करते हैं हमारे शरीर कि ग्रंथियां लगातार पाचन क्रियो में व्यस्त रहता है। परंतु जो आहार हम ग्रहण करते हैं उसका रस समान रूप से पूरे शरीर में वितरित नहीं हो पाता है।

इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने 10 दिन लगातार आहार ग्रहण करने के पश्चात 11वीं दिन व्रत रखने को कहा था कि उसे दिन हमारे शरीर का लीवर सिस्टम अर्थात अग्नाशय जो हमारे भोजन को पचाता है वह हमारे द्वारा भोजन किए गए रस को समान रूप से पूरे शरीर में वितरित कर सके और जब हम आहार ग्रहण नहीं करते तो हमारा लीवर सिस्टम अर्थात अग्नाशय हमारे शरीर की व्याधियों विपत्तियों को अर्थात बैक्टीरिया जीवाणु विषाणुओं को नष्ट कर देता है जिससे हम सभी निरोगी रहते हैं और हमारा शरीर स्वस्थ में उत्तम रहता है इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने एकादशी का व्रत अनिवार्य रूप से करने को कहा है।

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