Kamakhya temple Story in hindi, Kamakhya mandir history

मित्रों भारत की सनातन संस्कृति में अनेक शक्तिपीठ हैं उनमें से एक शक्तिपीठ कामाख्या मंदिर भी है। आज हम आपको Kamakhya temple Story in hindi और  Kamakhya mandir history  की विस्तृत जानकारी हम आपको इसलिए के माध्यम से प्रदान करेंगे ।

 Kamakhya temple Story in hindi, Kamakhya mandir history
कामाख्या शक्तिपीठ

 Kamakhya temple Story in hindi

राजा दक्ष प्रजापति ने भगवती पार्वती की कठोर पूजा आराधना की थी और वरदान में देवी को ही कन्या रूप में जन्म लेने का निवेदन किया था इसके उपरांत भगवती ने उमा के रूप में दक्ष के यहां जन्म लिया। समय आने पर भगवान शंकर के साथ उनका विवाह हुआ लेकिन शंकर भगवान को वह नशेड़ी शमशान निवासी और औघड़ आदि समझता था।

इसलिए भगवती उमा का विवाह उनसे हो जाने के कारण वह परेशान रहता था और शिव जी का अपमान करने का कोई भी अवसर वह चूकता नहीं था। इसी कारण दक्ष प्रजापति ने एक विशाल महायज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने उमा महेश्वर का अपमान किया और

 सती अपने पति के अपमान से आहत होकर यज्ञ हवन में कूद गई। शक्ति न होने के कारण मोह वर्ष भगवान शिव उमा के निर्जीव शरीर को कंधे पर लेकर दौड़ते हुए अत्यधिक भाव विभोर और क्रोधित हो गए थे इससे संपूर्ण सृष्टि का कार्य बंद हो गया सृष्टि कार्य में उत्पन्न हुई इसी व्यवधान को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी की निर्जीव शरीर के टुकड़ों में विभक्त कर दिया ।

 Kamakhya mandir history

इस प्रकार इधर-उधर देवी के शरीर के अंग गिरे। जहां उनके अंग गिरे वही उसी स्थान के नाम से भगवती की उपासना होने लगी।

इसके साथ ही भगवान शंकर ने भी कहा कि इन स्थानों पर देवी  सशरीर रहकर भक्तों की अभीष्ट को पूरा करेंगे मैं भी भैरव रूप में उन स्थानों पर सदैव देवी के साथ विद्यमान रहूंगा। कामरूप में भगवती का योनि वाला भाग गिरा जो कामाख्या के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार शताक्षी मीनाक्षी कामाख्या आदि सभी शक्तियां एक ही है।

इसके पश्चात देवी ने भगवती पार्वती का रूप धारण कर लिया उसी शरीर कोष से श्री अंबिका जी का प्राकट्य शुंभ निशुंभ के वध करने के लिए हुआ। और देवताओं को इन राक्षसों के पाप से मुक्त कराया।

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महिषासुर की वध के लिए अपराजिता देवी सकल देवताओं के शरीर से प्रकट हुई भगवान शिव के वरदान देने के कारण भस्मासुर अत्यधिक बलशाली हो गया था तब देवी की प्रेरणा से भगवान विष्णु ने सुंदरी का रूप धारण करके उसे नृत्य करवा कर उसके ही हाथों से उसे भस्म कराया खाने का तात्पर्य यह है कि जब किसी देवता अथवा किसी भक्त पर किसी भी प्रकार का संकट हो तो भगवती ही उन्हें हर संकट से उबारती हैं।

Kamakhya Devi vrat Katha

राजा सुरथ और समाधि नाम के वैश्य की आराधना से प्रसन्न होकर देवी ने प्रत्यक्ष दर्शन दिया और कहा कि मैं तुम दोनों से प्रसन्न हूं तुम दोनों जो भी मांगोगे वह सब कुछ दूंगी। इस प्रकार की भक्ति पूर्वक देवी की पूजा अर्चना करने से देवी प्रसन्न होकर सभी को सब कुछ प्रदान करने के लिए सदैव तत्पर रहती है जो भी वस्तु मंत्र स्तुति आदि देवी को पसंद है उनको करने से वे त्वरित रूप में अचूक और अति शीघ्र ही फल प्रदान करती हैं इसलिए साधक को चाहिए कि वह शास्त्रों में बताई गई विधि के अनुसार अथवा अपने गुरुदेव के आदेश के अनुसार ही देवी की पूजा आराधना वंदना करें और निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होगी।

भगवती कामाख्या का भी प्रण है कि वे अपने भक्तों की सदैव सभी प्रकार से रक्षा करेंगी और शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें सच्चा दर्शन  प्रदान करेंगी।

Kamakhya temple

भगवती कामाख्या पुरुषार्थ को प्रदान करने वाले तथा अत्यंत शीघ्र सिद्धि प्रदा है। असम राज्य के गुवाहाटी से लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर भगवती कामरु कामाख्या का विशाल मंदिर स्थित है जहां साधना करके सिद्ध प्राप्त करने की इच्छा मन में लिए देश के विभिन्न राज्यों और विदेशों से सड़क और तांत्रिक लोग आते हैं।

  • प्रत्येक वर्ष जून मास में लगने वाले अंबुवाची मेले के समय यहां करोड़ों की संख्या में साधक लोग उपस्थित होते हैं। इसी समय भगवती कामाख्या को तीन दिन तक मासिक धर्म होता है जिस कारण यहां का संपूर्ण वातावरण ही लालिमा का रूप ले लेता है। क्योंकि इस समय भगवती रजस्वला होती है। इसी कारण इसी कारण तांत्रिकों के लिए यह एक विशेष महत्वपूर्ण समय होता है यहां रहकर वे जप तप करके सिद्धियां प्राप्त करते हैं।

कामाख्या मंदिर कहां है ?

असम राज्य के गुवाहाटी से लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर भगवती कामरु कामाख्या का विशाल मंदिर स्थित है ।

कामाख्या मंदिर का मेला कब और क्यों लगता है?

प्रत्येक वर्ष जून मास में लगने वाले अंबुवाची मेले के समय यहां करोड़ों की संख्या में साधक लोग उपस्थित होते हैं। इसी समय भगवती कामाख्या को तीन दिन तक मासिक धर्म होता है जिस कारण यहां का संपूर्ण वातावरण ही लालिमा का रूप ले लेता है। क्योंकि इस समय भगवती रजस्वला होती है।

कामाख्या मंदिर का मेला किस माह में होता है ?

प्रत्येक वर्ष जून मास में लगने वाले अंबुवाची मेले के समय यहां करोड़ों की संख्या में साधक लोग उपस्थित होते हैं

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