नवरात्रि क्यों मनाया जाता है इसका रहस्य क्या है | Navratri

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति बहुत प्राचीन एवं श्रेष्ठ थी। यह श्रेष्ठ सभ्यता और संस्कृति हमारे त्यौहारों में झलकता है। परंतु क्या आप जानते हैं कि  नवरात्रि क्यों मनाया जाता है इसका रहस्य क्या है | Navratri क्या नवरात्रि त्योहारों के पीछे गहरा विज्ञान है जिनमें जीवन जीने का रहस्य समाया हुआ है  क्या नवरात्रि पर्व में जीवन जीने के कुछ महत्वपूर्ण तत्वबोध समाया है ऐसा ही यह नवरात्र का त्यौहार है ।

नवरात्रि क्यों मनाया जाता है इसका रहस्य क्या है | Navratri
Navratri

नवरात्रि क्यों मनाया जाता है इसका रहस्य क्या है | Navratri

भारत में यह नवरात्र का त्यौहार भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ।नवरात्र में शिव शक्तियों की विशेष पूजा करते हैं। और उनसे शक्ति प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। भारत में वर्ष में दो बार नवरात्र का विधान बनाया है ।

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विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा पहली तिथि से 9 दिन अर्थात नवमी तक और इसी प्रकार ठीक 6 मास बाद अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयदशमी के पूर्व दिन तक मनाया जाता है।

परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रि को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन नवरात्रों में लोग अपने आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति का संचय करने लिए अनेक प्रकार के व्रत संयम नियम यज्ञ भजन पूजन योग साधना आदि करते हैं। कुछ साधक इन रात्रि में पूरी रात पद्मासन या सिंहासन में बैठकर मन्त्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

Navratri Vrat Katha : नवरात्रि कि पौराणिक कथा

नवरात्रि का अध्यात्मिक संदेश है की बुराई पर अच्छाई की जीत और जीवन को दिव्य शक्तियों से सशक्त करना। नवरात्रि शब्द में नव अहोरात्रम रात्रि बोध होता है। शास्त्रों में नवरात्र की पौराणिक कथा में से एक कथा में कहा गया है कि महिषासुर ने घोर तपस्या की और ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई मनुष्य या प्राणी मार नहीं सकता ।

इस वरदान से सशक्त महिषासुर स्वयं को महान समझने लगा और तीनों लोकों पर अपना साम्राज्य प्राप्त करना चाहा और सभी देवताओं को बंदी बनाया तब परमेश्वर शिव ने आदि शक्ति को प्रकट किया और वह दिव्य अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित और त्रिनेत्री थी और अष्टभुजाओं वाली थी।

उसने महिषासुर के साथ 9 दिन तक युद्ध किया और दसवें दिन महिषासुर का वध कर दिया और सभी देवी देवताओं को मुक्त कराया । महिषासुर कोई सचमुच में असुर नहीं है । लेकिन यही मनुष्य के आसूर्य वृत्तियों का प्रतीक है महिष शब्द का अर्थ भैंस है भैंस मंदबुद्धि और विवेकहीन तथा तमों गुण का प्रतीक है।

रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक है भारत के प्राचीन ऋषि मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। इसलिए दीपावली होली आदि उत्सव को रात में ही मनाने की परंपरा है दूसरा मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है ।

Navratri Ka mahatv

वास्तव में इन त्योहारों को मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारण होते हैं। यही दिव्य शक्तियां पृथ्वी को भी संतुलित बने रहने की ऊर्जा प्रदान करती है । पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में 1 साल की चार संधियां है उसमें मार्च और सितंबर मास में पड़ने वाले गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं।

साथ ही प्राकृतिक परिवर्तन से मनुष्य के तन और मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ऋतु परिवर्तन और सौर्य ऊर्जा के प्रभाव से मनुष्य के शरीर में ऊर्जा का स्तर परिवर्तित होता है। और यह उसके मन को प्रभावित करता है ।

जब ऊर्जा का स्तर बढ़ता है तब उसमें सात्विक प्रकृति विकसित होती है अर्थात सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। मनुष्य में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे उसके लिए उन्होंने इन त्योहारों का निर्माण किया है । जिससे उमंग उत्साह में रहकर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का स्तर बढ़े और वह स्वयं में सात्विक प्रकृति को विकसित कर सके।

दूसरा इस ऋतु संधि काल के समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। अर्थात शारीरिक बीमारियां बढ़ती है अतः उस समय स्वस्थ रहने के लिए और तन मन को निर्मल और पूर्णतया स्वस्थ रखने के लिए मनुष्य उपवास एवं रास गरबा करते हैं जिससे उसके शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है।

नवरात्र त्यौहार के प्रारंभ में लोग सर्वप्रथम कलश की स्थापना करते हैं अर्थात् परमात्मा शिव इस कलयुग की रात्रि में आकर सर्वप्रथम भारत के माता एवं कन्याओं को शक्ति स्वरूपा बनाकर उनकी बुद्धि रूपी कलश में ज्ञान भरकर उन्हें ज्ञान कलश प्रदान करते हैं । जिससे मनुष्य का अज्ञान अंधकार नष्ट होता है ।

दूसरा अखंड दीप प्रज्ज्वलित करना हैं और जागरण करना हैं अर्थात ज्ञानवृत्त से आत्मदीप जलाकर इस कलयुग के रात्रि में उस दीपक को अखंड जलाते हुए आत्म जागृति ले आना और इस रात्रि में जागरण करना है।

तीसरा व्रत नियम और उपवास रखते हैं अर्थात् परमात्मा शिव असुरों के खात्मे के निमित्त ब्रह्मचर्य व्रत अर्थात पवित्रता का व्रत और जीवन में श्रेष्ठ आचरण के नियम संयम को धारण करवाते हैं तथा शुद्ध शाकाहारी भोजन या उपवास रखते हैं।

उपवास अर्थात ऊपर निवास करने वाले परमात्मा के तरफ से हमारी बुद्धि का वास रहे ऐसा उपवास करवाते हैं। चौथ कन्या पूजन करते हैं मां दुर्गा महालक्ष्मी एवं सरस्वती की पूजा करते हैं यह कन्या पूजन क्यों करते हैं क्योंकि यह शिव की उत्पन्न की गई शक्तियां है जिसे वरदान मांगते हैं।

दुर्गा से शक्ति का वरदान मांगते हैं दूसरा लक्ष्मी से धन का वरदान मांगते हैं । सरस्वती से बुद्धि का या ज्ञान का वरदान मांगते हैं ।वास्तव में नवरात्रि के प्रथम तीन दिन मां दुर्गा की पूजा इसी भावना के साथ करते कि हे मा हमारे दुर्गुणों का नाश करो और हमारी कमजोरी का नाश करो और दिव्य शक्तियों का वरदान दो उन्हें महिषासुर मर्दानी भी कहते हैं ।

मां दुर्गा की उपासना करके व्यक्ति अपनी नकारात्मक मनोवृति एवं बुरे संस्कारों को जीतने की शक्ति चाहता है ताकि वह स्वयं में सकारात्मक शक्ति को विकसित कर आत्म उन्नति कर सके उसके बाद के तीन दिन वह दूसरों की पूजा अर्चना करते हैं।

जब दुर्गुणों का नाश होता और आत्म शुद्धिकरण हो जाता है। तब आत्मा में दिव्य शक्तियों का संचार होता है और व्यक्ति वास्तविक धन को अर्जित करने की पात्रता को विकसित कर सकता है वास्तविक धन अर्थात श्रेष्ठ चरित्र का धन उच्च संस्कारों का धन सद्गुणों का धन नवरात्रि के अंतिम तीन दिन मां सरस्वती की पूजा अर्चना एवं आवाहन करते हैं।

मां सरस्वती ज्ञान की देवी मानी गई है कहने का भाव है कि जब व्यक्ति अपने आसुरी संस्कारों का नाश करके आत्म शुद्धिकरण कर श्रेष्ठ चरित्र श्रेष्ठ संस्कारों एवं सद्गुणों का धन प्राप्त करता तब व्यक्ति में आध्यात्मिक ज्ञान को ग्रहण करने की क्षमता और शक्ति आती है।

Shradh: विज्ञान सम्मत है श्राद्ध कर्म

नवरात्रि का अर्थ : नवरात्रि में दुर्गा पूजा क्यों

अध्यात्म अर्थात ज्ञान के अध्ययन द्वारा आत्म अपने आधिपत्य को प्राप्त करें अर्थात संयम को धारण कर अपने जीवन में संतुलन ला सकता है।ज्ञान की शक्ति से व्यक्ति विवेक युक्त समझ से यथार्थ कर्मयोगी जीवन जी सकता है । यह शिव शक्तियों को हमेशा प्रकाश चक्र में सजी हुई स्वरूप में अष्टभुजाओं में अस्त्र-शस्त्र धारी एवं शेर पर सवारी करती हुई दिखाई है।

जिसका रहस्य है प्रकाश चक्र या उनके सम्पूर्ण असुरता पर विजय एवं पवित्रता का प्रतीक है। दूसरा सजी हुई मुहूर्त यह वास्तव में उनके दिव्या गुणों रूपी गहनों से सुसज्जित होने का प्रतीक है। तीसरा शेर पर सवारी शेर की सवारी अर्थात प्रकृति जीत की निशानी है। जब शिव शक्तियों ने अपने आप को संपन्न बना लिया।

अर्थात स्थूल जगत के सभी आधारों से निराधार हो गई तो प्रकृति के कोई आपदा विपदा उन पर वार करने के बजाय उनका सत्कार करती है या उनकी दासी बन जाती है। चौथा अष्टभुजा में अस्त्र-शस्त्र धारी यह योग के दिव्य अस्त्र शक्तियों रूपी शस्त्र द्वारा माया के विरुद्ध अहिंसक आध्यात्मिक युद्ध व विकारों पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की निशानी है।

या अष्टभुजा में अष्ट अलंकारों का आध्यात्मिक रहस्य क्या है इन अलंकारों में यह देवियां सजी हुई है परंतु यह हिंसक नहीं है। इनके नैनों में करोड़ों भाव एवं स्वरूप शक्ति का ही झलकता है।

यह अलंकारों का बहुत गहरा आध्यात्मिक रहस्य है जैसे सुदर्शन चक्र अर्थात सदा स्वयं की कमजोरी का दर्शन कर उन्हें नष्ट करना और जब दूसरों को देखें तब उनकी अच्छाइयों का दर्शन करें दूसरा त्रिशूल, त्रिशूल के नीचे की छड़ दृढ़ निश्चय का प्रतीक है।

और ऊपर के तीन पत्तियां अर्थात मन ,वाणी व कर्म द्वारा पांचो विकारों रूपी राक्षस को नष्ट कर उन पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक है। तीसरा शंख अर्थात ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा शिव द्वारा उद्घाटित ज्ञान के रहस्याओं की शंख ध्वनि कर अज्ञान अंधकार में सोई हुई मनुष्य आत्माओं को जगाने का प्रतीक है।

जब शंख बजाता है तो उसमें से हमेशा ॐ कि ध्वनि निकलती है। जिसमें तीन अक्षर समाएं है, अ उ, म, अ का अर्थ आचरण, उ का अर्थ उच्चारण और म का अर्थ है मन के विचारों को एक करना मन, वाणी, कर्म में सुसंवादिता को ले आना । चौथा तलवार, अर्थात मन पर प्रहार करने वाले ईर्ष्या, द्वेष ,विकार ,वासना रूपी भूतों को इन ज्ञान रूपी तलवार द्वारा मार गिराने का प्रतीक है।

पांचवा धनुष बाण इसका भावार्थ ज्ञान के आधार पर लक्ष्य पर अपना ध्यान केंद्रित करना व पुरुषार्थ रूपी बाण चलाकर ध्रुपद अथवा एक रस एवं श्रेष्ठ स्थिति को प्राप्त करना है। ज्योति, जगती ज्योति सदैव आत्मिक ज्योति जगह रहने का ही प्रतीक है।

सातवां गदा, कहा जाता है कि गदा जब ऊपर होती है तो युद्ध में जाने का प्रतीक है और गदर जब नीचे होती है तो युद्ध में विजयी होने का प्रतीक है । जीवन रुपी संघर्ष में परमात्मा ज्ञान की गदा से माया अर्थात पांच विकारों से युद्ध कर उन पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक है ।

आठवां कमल पुष्प कीचड़ भरे संसार में रहते हुए तामसिक विकारी एवं विषाक्त वायुमंडल से लिप्त एवं पवित्र रहने का प्रतीक है। यह दिव्य शक्तियां आंतरिक आध्यात्मिक शक्तियां है। क्योंकि विकारी आसुरी वृत्ति यह आंतरिक दुर्बलता से उत्पन्न होती है।

यही आध्यात्मिक शक्ति द्वारा कमजोरी रूपी असुरों का संघार करना है। इन शक्तियों की धारणा कुछ मूल्य के आधार पर कर सकते हैं । इन शक्तियों के आधार से ही हम कठिन समय में विपरीत परिस्थिति को सहजता से पार कर सकते हैं ।

इन शक्ति की धारणा ही हमें हर परिस्थिति में विजई बनाते हुए कई आत्माओं के लिए आदर्श बनाती हैं। इन्ही आदर्शों को लोगों ने शिव शक्ति के रूप में पूजा। प्रत्येक आत्मा रूपी शक्ति शिव परमात्मा की संतान है। स्वयं को पहचान कर शिव पिता से संबंध जोड़ने से ही शक्तियों की प्राप्ति कर दुष्टों का संघार कर सबकी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकेंगे ।

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