Nirjala ekadashi kab hai hindi: निर्जला एकादशी व्रत

सनातन हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। उन्हें एकादशियों में एक एकादशी निर्जला एकादशी व्रत है। निर्जला एकादशी का व्रत अन्य सभी एकादशियों से अधिक महत्वपूर्ण है। क्या आप जानते हैं कि इस वर्ष अर्थात संवत 2080 में Nirjala ekadashi kab hai hindi: निर्जला एकादशी व्रत । इस लेख में हम आपको निर्जला एकादशी व्रत की जानकारी देंगे।

Nirjala ekadashi kab hai hindi: निर्जला एकादशी व्रत
निर्जला एकादशी

Nirjala ekadashi kab hai hindi: निर्जला एकादशी व्रत

सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार संवत २०८० अर्थात 2023 में निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मनाया जाएगा । अर्थात इस व्रत का उपवास 31 मई 2023 को रखा जाएगा।

Nirjala ekadashi puja vidhi

निर्जला एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियो से निवृत्ति होकर गंगा जी में स्नान करना चाहिए स्नान करने के उपरांत भगवान श्री हरि का पूजन किया जाता है। पूजा में पीला चंदन, तुलसी की पत्ती,अक्षत, पीले पुष्प, फल, धूप दीप, मिश्री इत्यादि अर्पण किया जाता है।

इसके उपरांत ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण अथवा जाप करना चाहिए। इसके उपरांत इस दिन दान का विशेष महत्व है। निर्जला एकादशी व्रत में आवश्यक व्यक्ति को वस्त्र फल इत्यादि का दान किया जाना चाहिए इससे अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

Nirjala ekadashi vrat ka mahatv

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी सभी एकादशियों में सर्वश्रेष्ठ है यदि प्रति व्यक्ति पूरे वर्ष भर किसी भी एकादशी का नहीं रखता तो वह इस एकादशी को निर्जल निराहार व्रत रखने से पूरे वर्ष की एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। निर्जल निराहार व्रत रखने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और इससे हमें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं ।

निर्जल निराहार व्रत रखने से मनुष्य का शरीर पूर्णतया निरोग होता है उसे किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं होती। क्योंकि जब हम बिना कुछ आहार ग्रहण किया हमारे शरीर में जो अग्नि है वह शरीर के अंदर कीटाणु को मार देती है जिससे किसी भी प्रकार की बीमारियां उत्पन्न नहीं होती हैं। तथा इस दिन वस्त्र फल आदि दान करने तथा भूखे व्यक्ति को भोजन कराने से अखंड पुण्य की प्राप्ति होती है। तथा व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त होता है।

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Nirjala ekadashi vrat Katha

हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत द्वापर युग के महाभारत काल से प्रचलित है। सभी पांडव एकादशी का व्रत रखते थे परंतु भीमसेन एकादशी का व्रत नहीं रखते थे। क्योंकि भीम सबसे ज्यादा भोजन ग्रहण करते थे और वह खाना खाने के बहुत शौकीन थे इसलिए उनसे एकादशी का व्रत नहीं हो सकता था।

सभी पांडव भाइयों और माता कुंती के समझाने पर भी भीमसेन एकादशी का व्रत नहीं रख पाते थे। भीमसेन ने कहा कि मेरी जठराग्नि अत्यंत तीव्र है जिसके कारण मुझे अत्यधिक भूख लगती है और मैं बिना आहार ग्रहण किए नहीं रह सकता इसलिए एकादशी का व्रत करना संभव नहीं है।

एकादशी का व्रत अस्वीकार करने पर पांडवों ने महर्षि वेदव्यास से इसकी जानकारी दी पांडव भाइयों ने और माता कुंती ने वेदव्यास से बताया कि भीम पूरे वर्ष में एक भी एकादशी का व्रत नहीं करते हैं काफी समझाने के बाद भी वह इस व्रत का पालन नहीं कर पाते हैं।

उसके पश्चात महर्षि वेदव्यास ने भीमसेन से पूछा कि आप स्वर्ग जाना चाहते हैं या नरक। भीमसेन ने वही उत्तर दिया उन्होंने कहा हर व्यक्ति स्वर्ग जाने की इच्छा रखता है। महर्षि वेदव्यास ने कहा यदि आप स्वर्ग जाना चाहते हैं तो आपको एकादशी का व्रत करना अनिवार्य है।

भीमसेन ने महर्षि से पूछा की क्या ऐसी कोई एकादशी का व्रत है। जो केवल एक एकादशी का व्रत करने पर पूरे वर्ष की समस्त एकादशियों के लाभ प्राप्त हो सके।

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत करने से पूरे वर्ष की एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। परंतु यह व्रत का नियम अत्यंत कठोर है इस व्रत में बिना जल ग्रहण किए और बिना अन्य ग्रहण  किए इस व्रत का उपवास किया जाता है।

उसके पश्चात भीमसेन ने यह व्रत करने का संकल्प लिया और विधि विधान से इस व्रत का समापन किया तभी से इस व्रत को भीमसेन एकादशी अथवा पांडव एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी का व्रत सभी एकादशियों से महत्वपूर्ण है।

 

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