Sita Haran Story In Hindi : लंका में रावण ने सीता को क्यों नहीं किया स्पर्श

लंका पति रावण ने मां सीता को पंचवटी चित्रकूट से अपनी पुष्पक विमान से Sita Haran Story In  Hindi  उठा ले गया। सीता  हरण तो रावण ने किया परंतु उसने कभी भी सीता जी को स्पर्श नहीं किया। हम आपको इस लेख में रावण ने सीता जी को स्पर्श क्यों नहीं किया इसके बारे में बताएंगे।

Sita Haran Story In Hindi : लंका में रावण ने सीता को क्यों नहीं किया स्पर्श
Sita haran

Sita Haran Story In Hindi

रावण ने अपने मायावी पुस्तक विमान में माता सीता जी को हरण कर लिया परंतु उसने माता सीता जी को स्पर्श नहीं किया वह अपने पुष्पक विमान में अपनी माया के प्रभाव से मां सीता जी को हरण कर लिया। लंका में भी रावण ने सीता जी को स्पर्श नहीं कर सका।

एक बार की बात है रावण कैलाश पर्वत के समीप से गुजर रहा था। लगभग सूर्यास्त हो चुका था और कैलाश का रमणीय वातावरण देखकर रावण ने रात्रि वहीं पर व्यतीत करने का मन बना लिया। आकाश में चंद्रमा की चांदनी चमक रही थी। मंदाकिनी नदी के कल कल की स्वर तथा कदंब, चंपा और मंदार पुष्पों की सुगंध ने वातावरण को और मधुकर तथा मन मोहने वाला बना दिया था।

शीतल और मंद समीर का झोंका आता तो पल्लवित वृक्ष पुष्प वर्षा करने लगते जिससे पूरा क्षेत्र सुगंधित हो उठता था। ऐसे मनमोहन वातावरण को देखकर रावण के मन में कामना उत्तेजित हो उठी। इस समय रावण की दृष्टि एक युति पर पड़ी रावण उसके सौंदर्य पर अत्यधिक मंत्र मुग्ध हो गया था। रावण ने सोचा इस गहरे अंधकार में इतनी सुंदर युक्ति कौन है और यह युति कहां जा रही है। यह सोचते सोचते रावण ने धीरे-धीरे उसे ज्योति के समीप पहुंचा।

युवती के शरीर पर चंदन का लेप लगा था और उसके बालों में कल्पतरु के फूल बंधे हुए थे। उसका मुख चंद्रमा की भांति प्रज्वलित हो रहा था और उसकी भवें धनुष के समान तनी थी। उसने ऐसी युवती को देखकर रावण कामना से वसीभूत होकर उसने अपना संयम खो बैठा। और वह उसे युति का हाथ पकड़ लिया और उसने पूंछा कि हे रूपवति तुम कौन हो और इस भयंकर अंधेरे में कहां जा रही हो।

उसने रावण की विशाल रूप को देखकर सहम गई और उसने अपने हाथ छुड़ाने का प्रयास किया और पूछा कि आप कौन हो। और मेरा हाथ आपने क्यों पकड़ा ? रावण ने अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं लंका का स्वामी और राक्षस राज रावण हूं ।यहां का सुंदर और मनमोहक वातावरण देखकर आज यही विश्राम करने का निर्णय लिया परंतु तुमने बताया नहीं कि तुम कौन हो ?

युवती अपना परिचय देते हुए कहती है कि तातश्री, मैं देवलोक की अप्सरा हूं और मेरा नाम रंभा है रंभा ने रावण को प्रणाम करते हुए ऐसा कहा। रामायण हर्षित होकर भोला अप्सरा और राक्षस राज का अच्छा सहयोग बनेगा लेकिन तुमने मुझे तातश्री क्यों कहा ? क्योंकि मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं।

रावण ने आश्चर्यचकित होकर रंभा से पूछा मेरी पुत्रवधू आप कैसे हो सकती हैं। मैं आपके सौतेले भाई  धनेश्वर कुबेर के पुत्र नलकूबर से प्रेम करती हूं।और उन्ही से मिलने जा रही हूं। रावण ने बड़ी तेज से हंस कर बोला अप्सराएं कब से प्रेम करने लगी। प्रेम और निष्ठा साधारण स्त्रियों को शोभा देता है। तुम अप्सरा और तुम्हारा कार्य केवल नृत्य और लोगों को मनोरंजन करना है इसके लिए नलकूबर के पास जाने की क्या आवश्यकता वो भी मेरे होते हुए।

तुम्हारी सुंदर और कामनीय काया का भोग कोई और करें । ऐसा मैं कदापि नहीं होने दूंगा। रावण पर काम पूरी तरह हावी हो चुका था। रंभा ने रावण को पिता समान बात कर कई बार रावण से आग्रह किया कि वह उसे नलकूबर के पास जाने की अनुमति दे दे परंतु रावण ने निर्लज्जता की सब सीमाएं पार कर दी। रावण ने कहा रावण मृत्यु लोक पति रावण तुमसे प्रेम की कामना कर रहा हूं और तुम मेरा अपमान कर रहे हो और उसे कायर कुबेर के पुत्र  नलकूबर के पास जाना चाहती हो और मैं यह कदापि नहीं होने दूंगा मेरे निकट आओ।

ऐसा कहते हुए रावण ने रंभा को बलपूर्वक पर्वत शिला पर पटक दिया वासना के ज्वार के शांत होने तक रावण रंभा का मर्दन करता रहा फिर वह अपने शिविर में लौट आया। उसके पश्चात रंभा रोती बिलखती नलकूबर को सारी घटना का परिचय कराया। यह सुनकर नलकूबर अत्यंत क्रोधित उठा और वह लड़ने के लिए उत्तेजित हो उठा परंतु वह जानता था कि वह रावण को कभी भी परास्त नहीं कर सकता।

इसलिए नलकूबर ने रावण को श्राप दिया कि कामी और धूर्त रावण कभी किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श भी नहीं कर सकेगा यदि उसने ऐसा किया तो उसके सिर के साथ टुकड़े हो जाएंगे। जब रावण को नलकूबर द्वारा दिए गए श्राप के बारे में पता चला तो वह अत्यंत भयभ हुई तो हो उठा।और उस दिन के पश्चात् से रावण ने स्त्रियों से दुराचार करना छोड़ दिया। इसी श्राप के भय से रावण ने Sita Haran (सीता जी का हरण) तो किया परंतु वह कभी भी सीता जी को स्पर्श नही किया।

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