सनातन हिंदू परंपरा में किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में Swastik (स्वास्तिक ) का चिन्ह अवश्य बनाया जाता है। स्वास्तिक को सौभाग्य और कल्याण के लिए जाना जाता है। स्वास्तिक बनाने के पीछे का अर्थ यह है कि इस चिन्ह से घर के वास्तु दोष को दूर किया जा सकता है। इस लेख में हम आपको स्वास्तिक का वैदिक महत्व तथा उसके वैज्ञानिक परिणाम और स्वास्तिक बनाने की सही प्रकार की विधि और उसमें प्रयोग होने वाले तत्वों के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

Swastik
ओम की भांति स्वास्तिक का चिन्ह भी भारतीय संस्कृति से अनादि काल से जुड़ा है । यह मात्र धार्मिक प्रतीक नहीं है। अपितु एक वैज्ञानिक सशक्त चिन्ह है। इसके पीछे कालचक्र का विज्ञान है। परंतु इसे निर्मित करने व बनाने की सामग्री का विशेष विधान है ।
यदि स्वास्तिक चिन्ह विधि के अनुसार और आवश्यक सामग्री से निर्मित नहीं होगा तो यह मात्र एक रेखा चिन्ह बनकर ही रह जाएगा। और इसका कोई भी शुभ परिणाम हमें नहीं मिलेगा फिर हम इसे दोष देंगे कि यह एक अंधविश्वास मात्र है।
How to make swastik : Swastik kaise banta hai
इसकी रचना की सही विधि के लिए पहले आप पांच सामग्रियों का मिश्रण तैयार करें। जिसमें गंगाजल, गोमूत्र, कुमकुम, हल्दी एवं केसर इस मिश्रण से स्वास्तिक का चिन्ह पूजा कक्ष या घर के द्वार पर दोनों ओर शयनकक्ष में या फिर जमीन पर किसी भी उचित स्थान पर बनाएं।
इन पांचो पदार्थ में शुद्धिकरण व आकर्षण शक्ति विद्यमान है। जो इस चिन्ह को जाग्रत करती है। ध्यान रहे की ही अपने घर या कार्यस्थल पर स्वास्तिक का प्रतीक बनाने की यह विधि सबसे प्राचीनतम वैदिक विधि है
वैसे हम स्वास्तिक के महत्व के विषय में बताने में अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है कि इसका महत्व जर्मनी में भी है। जर्मनी में इसका प्रयोग बड़ी श्रद्धा के साथ किया जाता है। नाजी जर्मनी के समय में तो स्वास्तिक का चिन्ह उनका राजकीय चिन्ह था।
स्वास्तिक बनाते समय पहले एक रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर तथा दूसरी रेखा पहली रेखा को मध्य से काटते हुए उत्तर से दक्षिण की ओर समान रूप से खींचकर धन(+) का चिन्ह बनाते हैं और उसके पश्चात उसे स्वास्तिक का आकार देते हैं।
बाद में स्वास्तिक के बीच अर्थात धन के चिन्ह के चारों ओर रेखाओं के बाहर बीचो-बीच एक-एक बिंदी लगाए। यहां इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि स्वास्तिक उल्टा ना बने उल्टे स्वास्तिक का अर्थ होगा समय चक्र को उल्टा चलाना जो की शास्त्रों की दृष्टि से बिल्कुल गलत है।
प्रतीक को ध्यान से देखने पर आपको यह पता चलेगा। कि इसकी भुजाएं घड़ी की सुई की तरह (क्लाक वाइज ) बाई ओर से दाएं ओर घूमती है। इस प्रकार से बना स्वास्तिक चिन्ह 27 नक्षत्रों की ऊर्जा को एकत्र एकत्रित करके आपके चारों ओर फैलाता है।
स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उस पर आसान बनाकर बैठने से मन को शांति प्राप्ति होती है। और ध्यान लगाना अत्यंत आसान होता है। परंतु यह ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है कि स्वास्तिक का प्रतीक विधि पूर्वक बनाया गया हो।
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History of Swastik
सनातनी हिंदू, जैन,बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले लोग स्वास्तिक का प्रयोग करते हैं। स्वास्तिक शब्द संस्कृत के शब्द स्वा+ अस्ति के योग से बना है। जिसका अर्थ सौभाग्य और कल्याण है इसी कारण आजकल इस चिन्ह के साथ प्रायः शुभ एवं लाभ शब्द लिखे हुए देखने को मिलते हैं।
स्वास्तिक का चिन्ह मोहनजोदड़ो सभ्यता की खुदाई में भी पाई गई । प्रत्येक मुद्राओं पर भी अंकित पाया गया है जैन धर्म के अनुयाई इसे अपने सातवें तीर्थंकर का प्रतीक मानते हैं। और इसकी चार दिशाओं को मनुष्य के निर्माण की चार अवस्थाएं जबकि हिंदू इनमें चार पुरुषार्थ चार वेद चार धाम और देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश व गणेश जी को देखते हैं।
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