Vaidik Kal: वैदिक काल का इतिहास

Vaidik Kal (वैदिक काल) के विषय में ज्ञान का आधार साहित्य का वह वर्ग है जिसे हम वैदिक साहित्य के नाम से जानते हैं यह केवल भारतीय आर्यों का नहीं अपितु संपूर्ण आर्य समूह का प्राचीनतम साहित्य है। वेद का अर्थ है ज्ञान और सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार यह शाश्वत तथा अपौरुषेय है। हम आपको इस लेख में  Vaidik Kal (वैदिक काल) की संपूर्ण जानकारी विस्तृत पूर्वक देंगे।

Vaidik Kal: वैदिक काल का इतिहास
वैदिक काल का इतिहास

Vaidik Kal: वैदिक काल का इतिहास

वैदिक काल में वेदों की रचना हुई है। वेदों की रचना मनुष्य द्वारा नहीं की गई। आप ही तो वेदों को ऋषि और महर्षियों ने ईश्वर से सुना है इसी कारण वेदों को श्रुति भी कहा जाता है। वेदों की संख्या चार है । ऋग्वेद,सामवेद,यजुर्वेद और अथर्ववेद। प्रत्येक वेद के कर भाग हैं मंत्र अथवा संहिता भाग प्रत्येक वेद की अपनी संहिताएं हैं। कालांतर में मंत्रों की व्याख्या करना आवश्यक समझा गया और विद्वानों का उदय हुआ विद्यानों द्वारा ग्रंथ गद्य में लिखे गए हैं।

वेदों के मित्रों के अर्थों पर विचार के साथ-साथ उनके प्रयोग का विधान भी बताया गया है। यज्ञों से संबंधित अन्य बातों पर भी चर्चा इनमें मिलती है। आरण्यक विद्वान ग्रंथों के कुछ भाग अधिक पवित्र माने जाने लगे और उन्हें जंगल के एकांत में पढ़ने योग माना गया इसी कारण इन्हें अरण्यक उपनिषद् कहा गया है। इन उपनिषद में आध्यात्मिक विद्या की गहन चर्चा की गई है।

वैदिक साहित्य के ग में ऋग्वेद संहिता सबसे प्राचीन है इसमें 1028 सुत हैं जो 10 मंडलों अथवा 8 अष्टकोण में विभाजित हैं इन सूक्त में विश्वामित्र अत्रि वामदेव भारद्वाज वशिष्ठ आदि ऋषि परिवारों की रचनाएं हैं । जो विभिन्न देवताओं को संबोधित हैं। इसके दो ब्राह्मण हैं।  ऐतरेय ब्राह्मण तथा कौषीतिक ब्राह्मण इससे संबंधित दो उपनिषद भी इसी नाम से मिलते हैं सामवेद में 75 मित्रों को छोड़कर अन्य सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं तथा इन्हें सोम यज्ञ के   उपलक्ष्य में लोग गाते थे।

यजुर्वेद में यज्ञ की विधाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है इसके दो स्पष्ट रूप से भेद मिलते हैं शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद इस वेद की कई शाखाएं मिलती हैं जैसे काठक संहिता, मैत्रायणी संहिता, वाजसनयी संहिता। ठीक इसी प्रकार अथर्ववेद को भी दो ज्ञात शाखों में विभाजित किया गया है यह शाखाएं शौनकीय की तथा पैंपलाद। अथर्ववेद में वशीकरण जादू ,टोना, मित्र ,लाभ, शत्रु-मारण आदि से संबंधित मंत्र मिलते हैं और इससे तत्कालीन लोक धर्म तथा लोक विश्वास के संबंध में जानकारी मिलती है।सनातन वैदिक परंपरा में आगे चलकर सूत्र साहित्य तथा वेदांगों की रचना हुई।

Arya Kha Se Aaye The: आर्य कहां के निवासी  थे

वैदिक सभ्यता के संस्थापक को ऋग्वेद में आर्य कहा जाता है। आर्य का अर्थ है  सुसंस्कृत कुलीन और श्रेष्ठ । डॉ राधा कुमुद मुखर्जी के अनुसार भारत का इतिहास आर्यों का इतिहास है। प्रायः यह देखा गया है कि आर्यों को मूल निवास के विषय में लोगों को सही जानकारी नहीं है। यदि हम बात करें आर्यों के मूल निवास कि तो आर्य मूलतः भारत के निवासी थे। परंतु कुछ तथाकथित इतिहासकार आर्यों को मध्य एशिया का बताते हैं और उस स्थान का नाम बोगागोई है। जो आज ईरान में है।

उन मूर्ख इतिहासकारों को शायद यह नहीं पता होगा कि भारत की सीमा ईरान, अफगानिस्तान,बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, इराक थाईलैंड कजाकिस्तान तक फैला था। परंतु आर्यों का मूल निवास स्थान सप्त सैंधव प्रदेश था। (सिंध और पंजाब प्रदेश ) ही था।

Vaidik Samaj: वैदिक समाज का सामान्य स्वरूप

आर्य लोगों के संगठित जीवन की उच्चतम इकाई ‘जन’ था। इसके लिए राष्ट्र शब्द का भी प्रयोग किया गया है। जन को प्रायः कबीला कहा जाता है।जन के के सदस्यों को सामूहिक रूप से विश कहा जाता था। आर्य लोग कई जनों में बटे हुए थे। जिन में पांच प्रमुख जन इस प्रकार थे। अनु, द्रुहा, यदु, तुर्वश, पुरू। इनके अतिरिक्त कई अन्य जन भी थे। जैसे भरत, तृष्टु, श्रृंजय, क्रिवि इत्यादि एक जन के अंदर कई ग्राम होते हैं और एक ग्राम के अंदर कई परिवार होते हैं परिवार का मुखिया ‘कुलपा’ कहलाता था।

आर्यों के इन जनों में प्रायः पारस्परिक युद्ध भी हुआ करते थे। इसी प्रकार एक भीषण पारस्परिक युद्ध परुष्णी नदी के तट पर हुआ था। जिसे दशराज के नाम से जानते हैं। इस युद्ध में भरतों के राजा सुदास ने 10 राजाओं के संघ को एक साथ अकेले हराया था। इन 10 राजाओं के कुल पुरोहित गुरु विश्वामित्र थे जबकि सुदास के कुल पुरोहित गुरु वशिष्ठ जी थे।

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