सनातन हिंदू धर्म पूर्णतया वैज्ञानिक आधारित है इसमें कुछ भी अंधविश्वास नहीं है। सनातन धर्म में यज्ञ हवन का विशेष महत्व है क्या आप जानते हैं वेदों में यज्ञ का वैज्ञानिक आधार : Yagya Havan ka Vigyan In Hindi क्या है ? इस लेख में हम आपको सनातन हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में यज्ञ का वैज्ञानिक आधार तथा आध्यात्मिक महत्व बताएंगे। हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों वर्ष पहले यज्ञ हवन से होने वाले लाभ का गहराई से अध्ययन किया। उसके पश्चात यह विद्या समस्त मानव जाति को मानव के कल्याण के लिए दे दिया।
वेदों में यज्ञ का वैज्ञानिक आधार : Yagya Havan ka Vigyan In Hindi
यज्ञ (हवन) वैदिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है आर्य मूल रूप से अग्नि के पूजक थे ऋग्वेद का प्रथम शब्द अग्नि है और यज्ञ अग्नि विज्ञान से जुड़ा है। जिसके अनुसार अग्नि में जो भी वस्तु डाली जाती है वह उसे भस्म करके उसका विस्तार कर देती है और सूक्ष्म रूप में उसे ऊपरी लोगों में भेज देती है। अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट किया है कि उनके द्वारा प्रक्षेपित रॉकेट से निकलने वाली लपटों के कारण रॉकेट में डाली ध्वनियों की मात्रा स्वतः बढ़ जाती है जो इस प्राचीन सत्य को प्रतिपादित करती है कि अग्नि में डाली गई वस्तुओं का अग्नि विस्तार करती है।
अग्नि पूजा का दर्शन है प्रकृति के प्रति और अन्य देवों के प्रति जो हमारा ऋण है उसे उतरना और वातावरण को शुद्ध करना यज्ञ की सारी प्रक्रिया के पीछे अग्निबाण मंत्र दो शास्त्र निहित है यज्ञ के लिए जो अग्नि कुंड तैयार किए जाते हैं वे शुद्ध गणित व रेखा गणित के आधार पर होते हैं वैदिक गणित और सुलभ सूत्रों के अनुसार प्राचीन काल में रेखा गणित की भिन्न-भिन्न 10 आकृतियां वाली ईंटों का प्रयोग अग्निकुंड को बनाने में किया जाता था ईटों का माप यज्ञ करने वाले व्यक्ति के शारीरिक बनावट पर निर्भर करता था रेखा गणित के सुलभ सूत्र इशा से आठ शताब्दी पूर्व के हैं सन 1975 में केरल में एक वैदिक यज्ञ का आयोजन किया गया था जिसमें प्राचीन मूल पद्धति का अनुसरण किया गया और पांच भिन्न-भिन्न आकार की 1000 ईंटों का प्रयोग किया गया था।
Havan Samagri
इसके अतिरिक्त यज्ञ में डाली जाने वाली सामग्री जैसे अनेक प्रकार की जड़ी बूटियां, काले तिल, जो चावल, गाय का देशी घी इन सभी चीजों का वैज्ञानिक ढंग से चयन होता था यह सभी पदार्थ जब अग्नि में स्वाहा होते हैं तो सूक्ष्म और विस्तारित होकर वायुमंडल में विलुप्त हो जाते हैं अग्नि में डालने से पूर्व मंत्र का उच्चारण होता है। जो अग्नि में डाले जाने वाले पदार्थ को सूक्ष्म रूप से किस दैविक शक्ति को भेजा जा रहा है वह बोले जाने वाले मंत्र से जाना जाता है मंत्र के अनुसार अग्नि उसे पदार्थ के सूक्ष्म रूप को निहित देव या देवी के पास पहुंचा देता है यही यज्ञ का विज्ञान है विशेष यज्ञ में हम देवताओं के मंत्रों के साथ-साथ आहुति में देवताओं की पसंद के पदार्थ भी अग्नि कुंड में डालते हैं जैसे गणेश जी के हवन में गन्ने के टुकड़े विष्णु हवन में चारु अर्थात दूध की खीर और पितृ हवन में काले तिल अग्नि इन्हें जलाकर भस्म करके परिवर्तित रूप में देवताओं को पहुंचा देती है और वह प्रसन्न होकर हमें मनवांछित फल प्रदान करते हैं हवन की अग्नि जड़ी बूटियां मेवा व अन्य पदार्थों की भस्म बना देती है जो एक सशक्त औषधि बन जाती है जिसे बाद में प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को बांटा जाता है।
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Yagya Ke Niyam
यज्ञ करनेवाले और कराने वाले दोनों के लिए कुछ नियम होते हैं जिनका उन्हें पूर्ण रूप से पालन करना पड़ता है इन नियमों में मन शुद्ध और शरीर शुद्धि दोनों का होना अनिवार्य है अन्यथा फल प्रति में बाधा आती है आजकल हम हवन तो करते हैं। पर उन सब नियमों का पालन नहीं करते ठीक उसी प्रकार हम भजन तो करते हैं पर धीरे-धीरे चूल्हे की आंख पर बना हुआ भोजन नहीं करते बल्कि आवेग पर पाक फास्ट फूड इस प्रकार हमें यज्ञ से भी तुरंत फल चाहिए पर यज्ञ के नियमों का पालन नहीं ऐसे में यज्ञ लाभकारी नहीं होगा।