महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों ने कई वर्षों तक हस्तिनापुर में शासन किया। पांडवों ने शासन करने के उपरांत पांचो भाई और द्रौपदी राज पाठ त्याग कर वानप्रस्थ यात्रा पर निकल गए इस समय कहीं से एक कुत्ता आया और पांडवों के साथ चल दिया। क्या आप जानते हैं कि युधिष्ठिर के साथ वह कुत्ता कौन था ? इस लेख में हम आपको Yudhishthir Aur Kutte Ki Kahani In Hindi : युधिष्ठिर और कुत्ता की पौराणिक कथा का विस्तृत वर्णन करेंगे यदि आपको जानकारी अच्छी लगे तो कृपया इसे अपने सगे संबंधियों से अवश्य साझा करें ।

जब पांचो पांडव द्रोपदी के साथ महा प्रस्थान यात्रा पर निकले। तो अचानक एक कुत्ता आया और पांडवों के साथ चल दिया पांडव आगे बढ़ रहे थे तभी द्रौपदी लड़खड़ा कर गिर पड़ी तभी उसकी सहायता के लिए दौड़े परंतु युधिष्ठिर ने उन्हें रोक दिया। युधिष्ठिर ने कहा रुको भीम द्रोपदी का समय पूरा हो गया है उसे यही छोड़ दो और आगे बढ़ो।
तभी भी ने युधिष्ठिर से पूछा द्रौपदी क्यों गिरी क्या उससे कोई भूल हुई थी युधिष्ठिर ने कहा द्रौपदी हम पांचो पांडवों की पत्नी थी लेकिन सबसे अधिक प्रेम अर्जुन से करती थी यही उसका दोष था द्रोपदी को छोड़कर पांचो भाई चल पड़े कुत्ता उनके साथ चल रहा था। थोड़ी देर चलने के पश्चात सहदेव गिर पड़े तो भी ने युधिष्ठिर से पूछा सहदेव तो सबके प्रति समान रूप से समर्पित थे फिर इनका क्या दोष था ?
युधिष्ठिर ने भी का उत्तर देते हुए कहा सहदेव को अपनी बुद्धि पर अत्यधिक अहंकार था यह उसकी सबसे बड़ी दुर्बलता थी फिर चारों भाई चले तो नकुल लड़खड़ाया और गिर पड़े भी ने कारण पूछा तो युधिष्ठिर ने बताया सहदेव को अपनी बुद्धि पर और नकुल को अपनी सुंदरता पर घमंड था । अहंकार इन दोनों के पतन का कारण बना।
अब गिरने की बड़ी अर्जुन की थी उन्हें गिरता देखकर भी युधिष्ठिर चलते रहे उन्होंने भी से कहा अर्जुन को घमंड था कि वह शत्रु सी को अकेले संघार कर सकता है इसलिए उसकी यात्रा अधूरी रह गई भीम और युधिष्ठिर के साथ मार्ग पर केवल कुत्ता चल पड़ा था कुछ ही क्षण बाद महाबली भी फिसल करनी चाहिए गिरने लगे उन्होंने अपने गिरने का कारण पूछा तो युधिष्ठिर ने कहा तुमने दो भूल की है एक तुम आवश्यकता से अधिक खाते हो और दूसरा तुम्हें अपने बल पर बहुत अत्यधिक घमंड है इसलिए तुम्हारा पतन हुआ है।
- युधिष्ठिर अकेला रह गया परंतु कुत्ता अब भी उसके साथ था देवता इस अद्भुत दृश्य को देखकर अचंभित थे युधिष्ठिर की इस कठिन यात्रा के बाद उन्हें मोक्ष मिलना था लेकिन देवराज इंद्र को यह स्वीकार्य नहीं था यह उन्होंने युधिष्ठिर की परीक्षा लेने का निर्णय किया। इंद्रदेव युधिष्ठिर के सामने प्रकट हुए पहले उन्होंने युधिष्ठिर के गुना के प्रशंसा की और फिर उन्हें सात शरीर स्वर्ग चलने का प्रलोभन दिया परंतु युधिष्ठिर ने इंद्रदेव के सामने एक विचित्र प्रतिज्ञा रखी वह बोले इस कठिन यात्रा में यह कुत्ता मेरे साथ चल रहा है ।
यदि आप मुझे स्वर्ग ले जाना चाहते हैं तो यह भी मेरे साथ जाएगा। इंद्र को आश्चर्य हुआ वह बोली थी वह लोक में कुत्तों के लिए स्थान नहीं है आसक्ति छोड़ो और मेरे साथ स्वर्ग चलो। तदुपरांत इंद्र ने पुनः लालच दिया तुम्हें देवलोक में अथवा संपत्ति अमृत तो शांति और प्रेम मिलेगा। इससे अधिक कोई और मनुष्य क्या चाहेगा इसलिए कुत्ते को साथ ले जाने का विचार त्याग दो यह सुनकर युधिष्ठिर ने निः संकोच बोले मैं देवलोक का विचार त्यागने को तैयार हूं लेकिन कुत्ते का साथ नहीं छोडूंगा।
किसने बुरे समय में मेरा साथ दिया है मैं इसकी निष्ठा से अभी बहुत हूं यदि इसके लिए देवलोक में स्थान नहीं है तो मेरे लिए कैसे हो सकता है शरणागत को डराना स्त्री की हत्या करना ब्राह्मण को धोखा देना और मित्रों के निंदा करना यह चार प्रमुख अपराध हैं परंतु निष्ठा वन्य जीव को त्याग देना इन चारों से भी बड़ा अपराध माना जाता है इसलिए मैं क्षमा चाहता हूं किंतु मैं कुत्ते को अकेला छोड़ नहीं सकता चाहे इसके लिए मुझे स्वर्ग लोक देवलोक क्यों ना छोड़ना पड़े ।
यह कहकर युधिष्ठिर ने पीछे मुड़कर कुत्ते की ओर देखा किंतु कुत्ता गायब हो चुका था उसके स्थान पर साक्षात धर्मराज खड़े थे युधिष्ठिर जो स्वयं धर्मराज और कुंती के पुत्र थे अपने पिता को देखकर चकित रह गए धर्मराज ने युधिष्ठिर से कहा पुत्र तुम धन्न हो में तुमसे अति प्रसन्न हो मेरी इच्छा है कि तुम देवराज इंद्र के साथ स्वर्ग जो देवराज इंद्र ने रथ का द्वार खोला और युधिष्ठिर को साथ बैठ कर स्वर्ग लोक के लिए रवाना हो गए।